Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 09
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 121
________________ अवसान-नोंध संस्कृत रंगमंचना रंगमा रोळायेल परिव्राजक गोवर्धन पंचाल 'कुत्ताम्बलम् ऐन्ड कूडियाट्टम्' ए एमना १९८४मां दिल्हीनी संगीत नाटक 'अकादमी वडे प्रकाशित पुस्तकनी मने आपेली नकलमां गोवर्धनभाईए लख्यु छ : १९५२-५६मां भारतीय विद्या भवनमां शरु करेली 'चर्चरी'नी चर्चाथी आजनी 'पोढ'नी चर्चाना समयनी यादमा'-२८-१०-८५. १९९६ना नवेम्बरनी २२मीए पोताना भरतनी रंगभूमि उपर प्रकाशित थयेला पुस्तकमांना बेत्रण संदर्भोनी वधु चकासणी करवा गोवर्धनभाई अमदावादनी एल. डी. इन्स्टिट्युट ओव इन्डोलजीमां गया हता. बीजे दिवसे ज मार्ग-अकस्मातमां एमर्नु अवसान थयु. __ शब्दशः जीवनना अंतिम श्वास सुधी- पांच दसकानुं एमर्नु नाट्यक्षेत्रनुं अविराम-अविरत परिभ्रमण, मेघाणीना परिभ्रमणनी हरोळi: थाक्या वगरना सेंकडो जाणकारो पासेथी अने पुस्तकालयोमांथी अढळक माहितीनो संचय; कांई केटलाये नाट्यत्सवोमां उपस्थिति : मारी शरु थयेली रास-चर्चरीने लगती पृच्छा-परिपृच्छा पछी, उत्तरोत्तर विकास सोपानो चडतां, गोवर्धनभाई पोताना विषयनी सर्वांगीण जाणकारीमा एवी कक्षाए पहोंच्या हता के एमनी जोडनो बीजो जाणकार देश-विदेशमां शोघ्यो न जडे –'अनामिका सार्थवती बभूव'. 'दूतवाक्य' अने 'भगवदज्जुकीय' ए नाटको संस्कृतमां भजववानो प्रयोग कर्या पछी तेमणे रामभद्र मुनिए १२मी शताब्दीमां रचेल अने भजवायेल नाटक 'प्रबुद्दरीहीणेय' मूळ संस्कृतमा ज सरस रीते तेमणे भजव्यु - ते माटेनो आर्थिक प्रबंध जेमतेम पण करीने अने भांगेल पगे लाकडीने टेके चालीने (एना परिचय माटे जुओ मारो लेखसंग्रह 'शोधखोळनी पगदंडी पर', १९९७, पृ. १८-२३). संस्कृत रंगमंचनी अठंग-अष्टांग उपासक एवी गुजरातनी एकमात्र हस्ती (एमणे तो 'गुर्जर संस्कृत रंगम्' नामे संस्थानी स्थापना करी जेथी आवी रीते बीजां संस्कृत नाटको पण भजबी शकाय) एकाएक नामशेष बनी-क्षरदेहे ज. अक्षरदेहे तो ए चिरकाळ विद्यमान रहेशे. ह. भा. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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