Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 09
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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नित नित नित नमता जाप जपतां दुख दुरगति नहीं पछइ । परवार पोढइ नहींय थोडइ सुधर्मस्वामी परवया राजग्रह वर नगर परसरि आवीनइ समोसर्या ।। ३६ ।।
वस्तु वरस बहुतिरि वरस बहुतिरि वीर आयु । पालीनइं शवपुरि गया सोहम्मस्वामि जिन पाटि थापिउ । महीयलि महिमां वस्तरिउ त्रणि त्रिभुवनि जस व्यापिउ । बहु परवारिं परवर्या आवइ राजगृहिं जिहा । जन सघला वंदन करइ जय जय वरतइ तिहां ॥ ३७ ॥
ढाल - ४
(एकवीसानु ढाल ।
आविउ आविउ रे आविउ जल०) । ए जाण्या ए जाण्या रे सोहम्मस्वामी समोसऱ्या । लोक आवइ रे परवारिं बहु परवर्या । अनव्रती रे बहूला आवी अणुसर्या । जंबूकुयर रे बंदनि पहूता गुणि भर्या ॥ ३८ ॥ गुणभऱ्या सोहम्मस्वामि वंदइ सुणंइ देसन गुरुतणी मधुरवाणी अमीयसमाणी हित आणी कहि घणी संसार सारइ सार पातु धर्माजनु कीइ क्रोध माया मान मूंकी लोभ थोभ न दीजीइ ॥ ३९ ॥ जाणु जाणु संभव दोहिलु । तेणइ कीजइ रे जिनधर्म ते अति सोहिलु । जिम छुटइ रे कर्म कठोर ते जीवडु ।
सघलांमां रे महाव्रत धर्म ते छ (छे) वडु ॥ ४० ॥ J० वडु महाव्रत धर्म जाणी जंबू वाणा(णी) ते ग्रहि
आदेस सामी अझे पामी चरित्र लेशिउं इम कहि ।
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