Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 09
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 92
________________ 87 आधि व्याधि दूरिं टलइ तेहनई रे हुइ सुखनुं कंदकि ।। ६७ || सोह० रूडां काज ते कीजीइ गणीइ विशेषि एह । परवार वारू वस्तरइ सजनशुं रे पणि वाधइ नेह के || ६८ || सोह० चिंता टलइ रोग उपसमइ न नडइ वइरी नास । नरनारी नित नित गणउ सोभागी रे सोहम्मनु रास के ।। ६९ ।। सोह० सवंत सोल ते जाणजिउ च्यालीसु निरधार । फागुण सुदि तेरसि भली नक्षत्र रे पुष्पनई गुरुवार के || ७० || सोह० विविधपक्ष गछि जाणी श्रीसुमतिसागरसूरिंद | श्रीगजसागरसूरि तस तणइ पाटि रे ऊदयुय दिणंद के ॥ ७१ ॥ सो० तास सीस पेटलाद्रमिं छइ पुण्यरत्नसूरि । ऋषभदेव पसाउलि हुइ रे आनंद भरपूरके ॥ ७२ ॥ सोहम्मस्वामी वांदु वांदइ रे सुरनरनी कोडि के | वांदइ रे मुनिव्वर करजोडि के । सोहम्मस्वामी वांदुं ॥ इति श्रीसुधर्म्मस्वामिनुं रास संपूर्णः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126