Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 09
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 95
________________ प्रयोगोनी पगदंडी पर सात 'सुख' सायणकृत 'माधवीय धातुवृत्ति' मां बोधिन्यास नामना वैयाकरणनो मत नों ध्यो छे के 'साति' धातु सुखवाचक छे अने ए मात्र पाणिनिसूत्रमां ज मळे छे (एटले के सौत्र धातु छे) । पाणिनिए ए धातु परथी 'सातय' एवं कृदन्त रूप बने छे एम कह्युं छे (३, १, १३८). कातंत्र व्याकरणमां पण ए धातुनो निर्देश छे । (जुओ 'बोधिन्यास ; एक अप्रसिद्ध वैयाकरण', 'सामीप्य' १२, २ जु. स. १९९५, पृ. ३६). - हरिवल्लभ भायाणी 1 मोनिअर विलिअम्झना कोशमां 'साति' ने बदले 'सात्' एवं धातुरूप आप्युं छे, अने 'सात'='सुख' अने 'सातय' ए साधित रूप आप्यां छे । हेमचंद्राचार्यना 'अभिधान - चिन्तामणि' मां सुखवाचक शब्दोनां 'सात' आप्यो छे (पद्यांक १३७०) । संपादके 'शात' एवो रूपभेद पण आप्यो छे. प्राकृतमां 'साय' शब्द सुखवाचक छे अने ते जैन आगम साहित्यमां वपरायो छे । जैन दर्शना सैद्धान्तिक ग्रंथ 'तत्त्वार्थाधिगम-सूत्र' मां कर्मना विविध प्रकारोमां 'सवेद्य' = (सातावेद्य) अने 'असद्वेद्य' (= असातावेद्य) गणावेल छे. पहेलानो अर्थ 'जेने लीधे सुख अनुभवाय' अने बीजानो अर्थ 'जेने लीधे दुःख अनुभवाय' एवो छे । आजे पण जैनोमां 'शाता छे', 'शातामां छे' एवा प्रयोग सामान्य भाषाव्यवहारमां छे । Jain Education International आम जे धातु के तेमांथी साधित शब्दनो प्रयोग अन्यथा संस्कृत साहित्यमांथी नथी मळतो ते जैन परंपरामां प्राकृतमां जळवायो छे. आथी ए धातुनी अने प्राकृत प्रयोगनी प्रमाणभूतता पण स्थपाय छे, अने धातुपाठना जे धातुओनो प्रयोग उपलब्ध संस्कृत साहित्यमाथी नथी मळतो तेमनो आधार प्राकृत साहित्यमांथी मळी रहेतो होवानुं आथी एक वधु उदाहरण आपणने मळे छे, तथा एवा धातुओ वैयाकरणोए कृत्रिम बनावी काढ्या छे ए मतनुं निरसन थाय छे. आ पहेलां में आना ज एक बीजा उदाहरण तरफ ध्यान दोर्युं छे । 'आड्वल्' एवो सोपसर्ग, 'ड्वल्' धातु गुजराती वगेरेमां मळती सामग्रीने आधारे प्रमाणभूत ठरे छे अने 'ट्बल्' के 'टल्' धातुओथी ए जुदो छे. जुओ 'Notes on Some Prakrit Words' ('निर्ग्रन्थ', १, १९९६, पृ. २५-३२) ए लेखमां पृ. २७ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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