Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 09
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 105
________________ पंडित वीरविजयजी स्वाध्याय ग्रंथ सं. कान्तिभाई बी. शाह. ( श्री श्रुतज्ञान प्रसारक सभा, अमदावाद, १९९६, डे. २४४ रू. १००) मध्यकालीन गुजराती साहित्य अने साहित्यसर्जकोमां जेमने साचो रस छे तेमणे आ पुस्तकना पहेला पानाथी छेला पाना सुधी अवश्य नजर नाखी जवी जोईए. श्री महावीर जैन विद्यालय ( मुंबई ) ना उपक्रमे ता - १६, १७ सप्टेम्बर १९९५ना रोज जैननगर, अमदावाद खाते श्रीशुभवीरना नामे जाणीता बनेला जैन साधु कवि श्री वीरविजयजीना साहित्य अने जीवनने केन्द्रमां राखीने आचार्य श्री विजयप्रद्युम्नसूरिजीनी निश्रामां 'पंडित वीरविजयजी : जीवन अने साहित्य' विषय पर एक परिसंवादनुं आयोजन करवामां आव्युं हतुं. आ परिसंवादमां जुदां जुदां स्थळोथी पधारेला विद्वानोए पंडित वीरविजयजीना जीवन अने साहित्य विशे अभ्यासपूर्ण निबंधो रजू कर्या हता, जे आ पुस्तकमां ग्रंथस्थ थया छे. आ स्वाध्याय ग्रंथमां रंगविजयकृत पं. श्रीवीरविजय 'निर्वाण रास' नुं त्रण हस्ततो अने एक मुद्रित प्रत एम चार प्रतोने आधार डो. कीर्तिदा जोशीए तैयार करेल संपादन उपरांत डो. चिमनलाल त्रिवेदीए 'शुभवेली'नी समीक्षा करतो विद्वत्तापूर्ण निबंध वांचेलो ते पण रजू करवामां आवेल छे. देशीओनी सूचि अने साहित्यसूचि सहित त्रीस लेखो अने बसो अढार पानामां विस्तरेला आ ग्रंथमां पं. वीरविजयजी विशेनी चरित्रात्मक माहिती आपता लेखो, कविप्रतिभाने उपसावतो लेख, कविनी कथनात्मक दीर्घ रसकृतिओ, वेलीस्वरूपनी रचनाओ, पूजारचनाओ, विवाहलो, बारमासा, ढाळियां, स्तवन, सज्झाय, गहूंळी, छत्रीशी आदि स्वरूपनी रचनाओ विशेना निबंधोने संपादके स्थान आप्युं छे. 'श्री रागेणाङ्कित ६३६ अक्षरात्मक' काव्यम्' जेवी कविनी अप्रगट संस्कृत गद्यरचना सौ प्रथम वार आचार्य विजयप्रद्युम्नसूरिजीना संशोधन-लेख अंतर्गत प्रगट करवामां आवी ते आ ग्रंथनुं ऊजळं जमापासुं छे. 'पंडित श्रीवीरविजय निर्वाणरास', 'सुरसुन्दरीनो रास', 'धम्मिलकुमारनो रास', 'चंद्रशेखर रास' जेवी कविनी रास रचनाओनो निबंधकारोए सुपेरे परिचय 'कराव्यो छे. 'शियळवेली' अने 'शुभवेली' जेवी वेलीप्रकारनी रचनाओ विशे विद्वानोए समीक्षात्मक लखाणो आप्यां छे. पूजासाहित्य विशेनो निवृत्त अने वयस्क प्राध्यापक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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