Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 09
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 104
________________ 99 आ विषयो ज एवा 'मातबर' छे के तेमां अत्यारे प्राप्त सामग्रीनी दृष्टिए, अद्यावधि थयेला संशोधनकार्यनी दृष्टिए अने संशोधनपद्धतिनी दष्टिए ते प्रत्येकने अद्यतन कक्षाए पहोंचाडवा- काम हवे पछी वर्षोनी निष्णात कोटिनी महेनत मागी ले तेम छे. ए दृष्टिए जोतां ए दिशाओगें काम हवे ठीकठीक काळग्रस्त गणाय. परंतु जयंतभाईए तो एक श्राद्धतर्पण, पवित्र कार्य कर्यु छे. देशाईए आरंभेलां कामो पूरा करवानो, विद्यापूर्वजोनुं ऋण फेडवानो भार आजनी पेढीने माथे छे. जयंतभाईनो असाधारण परिश्रम आवा अन्य पूर्वजो -- भगवानलाल इन्द्रजी, हरगोविंददास शेठ, ची. डा. दलाल, मुनि जिनविजय, पुण्यविजयजी, मंजुलाल मजमुदार वगेरेए संशोधन क्षेत्रे योगदान कयुं छे तेनुं स्मरण-मूल्यांकन करवा थोडाक जणने पण नहीं प्रेरे ? थोडीक संस्थाओने पण नहीं जगाडे ? -हरिवल्लभ भायाणी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126