Book Title: Anusandhan 1997 00 SrNo 09
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 102
________________ 97 संक्षिप्त इतिहासना पुनः संपादन अने प्रकाशन माटे जे कांइ सहयोग जोड़तो हशे ए आपवा हुं वचनबद्ध थाउं छं. आमेय हुं जयंतभाई साथै स्नेहबद्ध तो छं ज. आ धूळधोयाना कामने समजनारा, पोंखनारा ओछा ज होय छे पण आमां लाल लीटी 'ओछा' शब्द नीचे नहीं पण 'होय छे'नी नीचे मूकीने मारा हैयानो आनंद प्रकट करुं छं. - प्रद्युम्नसूरि (२) काळजयी साहित्यकृतिना पुनरुद्धारकनुं अभिवादन कोईपण सर्जनात्मक कार्य, जो ते चिरंजीव बनवानी क्षमता गुणवत्ता धरावतुं होय तो तेने, योग्य अवसरे, जीर्णोद्धारनी के पुनर्ग्रथननी गरज रहे ज छे. मंदिरोना के भव्य इमारतोना जीर्णोद्धार जो आवश्यक मनाता होय तो साहित्यक्षेत्रनी काळजयी कृतिओना पण जीर्णोद्धार शा माटे आवश्यक न गणाय ? तेमांय ए कृति जो संदर्भग्रंथ होय तो तो तेनो पुनरुद्धार, बदलाई गयेला साहित्यिक वातावरणना संदर्भमां, थाय ते सर्वथा उचित अपेक्षित जगणाय. परंतु आवा सर्जनात्मक कार्यनो पुनरुद्धार एवी योग्य व्यक्तिना हाथे के नजर नीचे थवो जोईए के जे व्यक्तिनी क्षमता ते कार्यना मूळ सर्जकनी क्षमतानी बरोबरीमां ऊभी रही शके तेवी होय. वळी, बदलायेला साहित्यिक परिवेशनो पूरेपूरो लाभ उठावी ते मूळ सर्जनने वधु तार्किक, वधु वास्तविक अने वधु संमार्जित रूपमा मूकी आपवानी सज्जता ने दृष्टि जेनामां होय ते ज आवा पुनरुद्धार माटे समर्थ अने योग्य व्यक्ति गणाय. मो. द. देशाईना अमर संदर्भग्रंथो 'जैन गूर्जर कविओ'नुं ए सद्भाग्य ज गाय के ते ग्रंथोने, उपर वर्णवी छे तेवी क्षमता तथा सज्जता धरावनार अनुसर्जक सांपड्या - श्री जयंतभाई कोठारीना रूपमां, 'जैन गूर्जर कविओ'ना नवा संपादनना पूर्वप्रकाशित ७ ग्रंथो अने अवशिष्ट रहेला ३ ग्रंथो एम दश ग्रंथोनुं जरा निरांते अवलोकन करीए तो जयंतभाईनी शोधक दृष्टि, चीवट, अने हाथमां लीधेला कार्यना एकाद अक्षरने पण अन्याय न थई जाय ते माटेनी सूक्ष्म जागृति, तेमां अक्षरे - अक्षरे जोवा मळशे. आपणे त्यां साहित्यजगतमां मानसपुत्र के मानसशिष्यनो एक ख्याल प्रचलित छे. जोके आ ख्यालने कारणे घणा सारा गणाता साहित्यिको पोते जेने कोई रीते आंबी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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