Book Title: Anekant 2012 Book 65 Ank 02 to 04
Author(s): Jaikumar Jain
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 3
________________ विराजै रामायण घट माहिं विराजै रामायण घट माहिं, मरमी होय मरम सो जाने मूरख मानै नाहिं विराजै रामायण घट माहि। आतम राम, ज्ञान गुन लक्षमन, सीता सुमति समेत, शुभ उपयोग वानर दल मंडित वर-विवेक रण खेत। विराजै रामायण घट माहिं। ध्यान धनुष टंकार शोर सुनि गई विषय दिसि भाग, भई भस्म मिथ्यामत लंका उठी धारणा आग। विराजै रामायण घट माहिं। जरे अज्ञान भाव राक्षस कुल, लरें निकांक्षित सूर, जूझे राग-द्वेष सेनापति संसे गढ़ चकनाचूर विराजै रामायण घट माहि। विलखत कुंभकरण भवविभ्रम पुलकित मन दरयाव, थकित उदार वीर महिरावण, सेतु-बंध सम भाव। विराजै रामायण घट माहिं। मूछित मन्दोदरी दुराशा, सजग चरन हनुमान। घटी चतुर्गति परणति सेना छुटे छपक गुण बान। विराजै रामायण घट माहिं। निरख सकति गुण चक्रसुदर्शन, उदय विभीषण दीन। फिरे 'कबंध' महीरावण की प्राण भाव सिर हीन। विराजै रामायण घट माहि। इह विधि सकल साधु घट अंतर होय सहज संग्राम, यह विवहार दृष्टि रामायण केवल निश्चय राम। विराजै रामायण घट माहिं। - पं. बनारसीदास

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 288