Book Title: Anekant 1948 10
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 13
________________ भारतीय इतिहासमें अहिंसा (लेखक-श्रीदेवेन्द्रकुमार) सृष्टि और मनुष्यका विकास कैसे हुआ, यह प्रश्न विकास नहीं समझ सकते। अभी भी विवाद-ग्रस्त है । धार्मिक कल्पना और 'वेद-वाङ्गमय' भारतका ही नहीं विश्वका प्राचीन वैज्ञानिक अनुसन्धान भी इस विषयमें हमारी अधिक वाङ्गमय है । उसका तथा दूसरी सभ्यताओंके विकास सहायता नहीं करते । इतिहासकारोंने सृष्टि विकासके का अध्ययन करनेसे एक बात विशेषरूपसे हमारा जो सिद्धान्त स्थिर किये हैं उनके अनुसार मानव ध्यान आकर्षित करती है और वह यह कि सभी जातिका इतिहास कुछ ही हजार वर्षोंका है । अग्रेज सभ्य मानव जातियाँ आरम्भमें शिकार और खेतीइतिहासकार, एम० जी० वेल्सने विश्व इतिहासकी बाड़ीसे अपना कार्य चलाती रहीं । इस प्रथाके साथ रूपरेखा खींचते हुए, ई० पू० छठवीं सदीको मान- 'पशुबलि' अनिवार्य रूपसे जुड़ी हुई थी। कहीं-कहीं वीय सभ्यताकी विभाजक रेखा स्वीकार किया है। मनुष्योंकी भी बलि दी जाती थी, वेदोंमें मनुष्यबलिआपके अनुसार यह सदी ही वह समय है जब का उल्लेख नहीं मिलता परन्तु पशुबलिका स्पष्ट मानवजातिने दर्शन और चिन्तनके नये युगमें कदम, विधान है। यज्ञ वैदिक आर्योंका प्रधान सामाजिक रक्खा । और तभीसे आधुनिक विचारधारांकी नींव उत्सव था। उसमें सभी जातिके लोग भाग लेते । पड़ी। एच० जी० वेल्सका यह भी कहना है कि यज्ञोंका मुख्य लक्ष्य ऐहिक सुख-समृद्धि था, धन प्रारम्भिक युगोंमें मनुष्य निरा असभ्य था। बहुत धान्यकी बढ़नी और शत्रुओंका संहार ही प्रारम्भिक युगोंके विकासके बाद उसमें विचारपूर्वक सोचनेकी आर्योंकी धामिकताका उद्देश्य था । पर ज्यों-ज्यों उनमें चेतना आई और उसने रक्तिम बलिदान, पुरोहिती विचार चेतना बढ़ी त्यों-त्यों पशुबलिके विरुद्ध भीषण तथा आडम्बरके विरुद्ध नई क्रान्ति की, यह क्रान्ति प्रतिक्रिया जोर पकड़ती गई। इस प्रतिक्रियाका स्पष्ट भारत, बेवोलीन, चीन और एफेससमें एक साथ आभास हमें उत्तर वैदिककालमें होने लगता है। हुई। इस कालमें कई समाज नेता और सुधारक आगे चलकर 'सोलहमहाजनपद' युगमें वह आभास, उत्पन्न हए, जिन्होंने पुराने गरुडमका विरोधकर नये कोरा आभास ही नहीं रह जाता किन्तु अहिंसा आदर्शोंकी प्रतिष्ठा की। उनके मतसे सरल जीवन भारतीय संस्कृति की रीढ' बन जाती है । महावीर और आत्मसंयम ही जीवन सुखी बनानेका सच्चा और बुद्धके युगसन्देशोंके लिये पृष्ठभूमि बहुत उपाय था । जहाँ तक विश्व इतिहासकी दृष्टिसे पहिलेसे बनना शुरू होगई थी, और एक प्रकारसे विचार करनेका प्रश्न है, उक्त लेखकका कथन प्रायः उनके समय भारतीय राजनीति, समाजसंस्थान और ठीक है । परन्तु भारतीय इतिहासमें यह 'सामाजिक दार्शनिक विचार स्पष्टरूपसे अपना आकार-प्रकार क्रान्ति' ई०पू० छटवीं सदीके कई सौ वर्ष पहिले हो ग्रहण कर चुके थे, उन्होंने उसमें केवल 'अहिंसा और चुकी थी; भगवान महावीर और बुद्धने जिस विचार मनुष्यता' का दार्शनिक एवं आध्यात्मिक सौन्दर्य धारापर जोर दिया वह बहुत प्राचीनकालसे भारतीय प्रतिष्ठित कर उसे नई दिशामें मोड़ा। जीवनमें प्रवाहित होती चली आरही थी, उसका ऊपर कहा जा चुका है कि महावीर और बुद्धठीक आकलन किये बिना हम अहिंसाका सही के पहले ही 'हिंसा और अहिंसा' का संघर्ष शुरू Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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