Book Title: Anekant 1948 10
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 25
________________ किरण १० ] तस्य पुत्र मातन तस्य भगिनी आल्ही एते नित्यं प्रणमन्ति । भावार्थ:- गृहपति (गहोई) वंशोत्पन्न साह अल्ह उसके पुत्र मातन उसकी बहिन आल्ही ये सं० १२०९ वैशाख सुदी १३को विम्बप्रतिष्ठा कराकर प्रतिदिन प्रणाम करते हैं। अहारक्षेत्रके प्राचीन मूर्ति-लेख मूर्त्तिके दोनों तरफ इन्द्र खड़े हैं । कुछ हिस्से छिल गये हैं जैसे--दाढ़ी - नासिका - अंगुली । बाकी सर्वाङ्ग सुन्दर है । करीब ५ फुट अवगाहना को लिये हुए खड्गासन है । पाषाण काला तथा चमकदार है। चिह्न वगैरह कुछ नहीं है । शिलालेख घिस गया है । कुछ हिस्सा पढ़ा जा सका जो इस प्रकार हैलेख नम्बर १० सं० १२०३ माघ सुदी १३ साहु जगचन्द्र पुत्र सखवंत भावार्थ:–सं० १२०३ माघसुदी १३को साह चन्द्र और उनके पुत्र सुखवंत दिने बिम्ब प्रतिष्ठा कराई । यह मूर्त्ति भी मन्दिर नं० १ के चौक में चिनी है । शिर धड़से अलग होनेपर भी जोड़ा गया है। दोनों हाथोंके पहुँचे छिल गये हैं । बैलका चिह्न है। करीब १|| फुटकी अवगाहना है, आसन पद्मासन हैं । पाषाण काला है । लेख नम्बर ११ सं० १२०३ माघसुदी १३ गोलापूर्वान्वये साहु भवदेव भार्या जसमती पुत्र लक्ष्मीवन प्रणमन्ति नित्यम्। भावार्थ:-गोला पूर्ववंश में पैदा होनेवाले शाह भावदेव उनकी धर्मपत्नी जसमती पुत्र लक्ष्मीवनने १२०३ माघ सुदी १३ को प्रतिष्ठा कराकर सब प्रतिदिन प्रणाम करते हैं । Jain Education International [ ३८७. श्रीदेवचन्द्र सुत दामर भार्या ऋपिली प्रणमन्ति नित्यम् । भावार्थ:-- गोलाराड वंशोत्पन्न शाह श्रीदेवचन्द्र उनके पुत्र दामर उनकी पत्नी त्रपिली सं० १२३७के अगहन सुदी ३ शुक्रवारको प्रतिष्ठा कराकर प्रतिनि प्रणाम करते हैं। यह मूर्त्ति भी मन्दिर नं० १के चौकमें विराजमान है। दोनों ओर इन्द्र खड़े हैं। सिर्फ नासिका गई है। बाकी सर्वाङ्ग सुन्दर है। चिह्न हिरणका है। करीब ३। फुट ऊँची खड्गासन है । काले पाषाणसे निर्मित है । लेख नम्बर १३ 1 सं० १२१६ माघसुदी १३ शुक्र जैसवालान्वये साहु श्रीघण तद्भार्या सलषा तस्य पुत्र साहु श्रमदेव - तथा कामदेव सुत लखमदेव तस्य प्रयेदेवचन्द्रवाल्हू सांति - हाल प्रभृतयः प्रणमन्ति । मंगलं । महाश्रीः ॥ भावार्थ : – जैसवाल वंशमें पैदा होनेवाले शाह घण उनकी पत्नी सलषा उसके पुत्र शाह श्रमदेव तथा कामदेव उसके पुत्र शाह लखमदेव उसके गृहमें पैदा होनेवाले देवचन्द्र-वालू- सांति- हालू प्रभृति सं० १२१६ माघ सुदी १३ शुक्रवारके दिन विम्ब टकराई। . यह मूर्ति भी मन्दिर नं० १के चौकमें शिर जोड़ 'कर चिन दी गई है। बाक़ी सर्वाङ्ग सुन्दर है । चिह्न हाथीका है। २। फुट ऊँची पद्मासन है। पाषाण काला - है । लेखका कुछ हिस्सा छिल गया है । लेख नम्बर १४ 'साहु श्रीमल्हण तस्य सुत वाकु तस्य सुत लाल तस्य भार्या नाधर तयोः सुत वाल्हराउश्रमदेव अजितं जिनं प्रणमन्ति नित्यम् । सं० १२०३ माघ सुदी १३ । यह मूर्त्ति भी मन्दिर नं० १ के चौकमें चिनी है। शिर घड़से अलग होनेपर पुनः जोड़ दिया गया है । चिह्न कुछ नहीं है । करीब १ || फुट ऊँची पद्मासन कापाषाणकी है। भावार्थ:-शाह श्रीमल्हण उनके पुत्र वाकु उनके पुत्र लाल उसकी पत्नी नाधर उन दोनोंके पुत्र दोवाल्हराय - श्रमदेव अजित जिनको प्रतिदिन प्रणाम लेख नम्बर १२ सं० १२३७ मार्गसुदी ३ शुक्र - गोलाराडान्वये साहु करते हैं। सं० १२०३ माघ सुदी १३को प्रतिष्ठा हुई। For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org.

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