Book Title: Anekant 1948 10
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 35
________________ किरण १० ] अपभ्रंशका एक शृङ्गार-वीर काव्य [३९७ भाई अरहदासके यहाँ विद्युन्मालीका अन्तिम केवली- वहाँ जाकर कन्याके साथ परिणय करनेकी प्रार्थना के रूपमें जन्म होगा यह सुनकर हर्षित होकर यह करता है । जम्बू अकेले जाकर विद्याधरसे युद्ध करते नाच रहा है। सातवीं रात्रिके चतुर्थ प्रहरमें अरहदास हैं। मृगाङ्कराजा कन्या जम्बूस्वामीको समर्पित कर देता की प्रियाने जम्बूफल आदि वस्तुएँ स्वप्नमें देखीं। स्वप्नों है । पीछेसे श्रेणिकराजकी सेना भी देशान्तरों में का फल बताते हुए मुनि कहते है कि उसके एक पुत्र भ्रमण करती हुई पहुँच जाती है। रत्नशेखर(-सिंहहोगा जो सोलह बरस रहकर दीक्षा लेगा। समया: चूल) विद्याधरकी हार होगी ऐसा प्रतीत होने लगता नुकूल जम्बू जन्म लेते हैं और शीघ्र विद्याध्ययन है (सन्धि ५)। समाप्त करते हैं। जम्बूफल स्वप्नमें उनकी माताने देखा छठी सन्धिका प्रारम्भ कुछ प्राकृत पद्योंमें की गई था इसलिये उनका नाम जम्बूस्वामी रखा गया। कविवीरकी कवि-प्रतिभाकी प्रशंसासे होता है। उस जम्बूस्वामी अत्यन्त सुन्दर थे नगरकी रमणियाँ उन्हें सम्पूर्ण सन्धिमें जम्बूस्वामीके युद्ध कौशलका वर्णन देखकर आसक्त होजाती थीं और विरहका अनुभव किया गया है। अन्तमें रत्नशेखरको मृगाङ्क राजा पराकरने लगती थीं। .. जित कर देता है और जम्बू सहस्रों भटोंको परास्त उसी नगरमें समुद्रदत्त श्रेष्ठि रहता था. उसके कर देते हैं । युद्धका वर्णन बड़ी क्षमतापूर्वक कविने चार सुन्दर पुत्रियाँ थीं, समुद्रदत्तने उन कुमारियोंका किया है । युद्धके प्रसङ्गमें अद्भुत, बीभत्स व्यापारोंका विवाह जम्बूस्वामीसे करना निश्चित किया । विवाहकी चित्रण करते हुए कविने साङ्गोपाङ्ग युद्ध वर्णन किया तैयारियाँ हो रहीं थी. इतनेमें ही वसन्त-ऋतु आ है । आठ सहस्र विद्याधरोंको उसने परास्त कर दिया। पहुंची. सब लोग वसन्तोत्सवके लिए राजोद्यानमें अन्तमें पराजित रत्नसिंहको वह क्षमा कर देता है। जाते हैं। क्रीडाके उपरान्त सुरति खेदको दूर करनेके विद्याधर रत्नसिह पाँचसो विमान लेकर जम्बूके साथ लिए सरोवरमें जलक्रीडा सब करते हैं. सब लोग जब उसे मगध पहुंचाने चल देता है। विमान नर्मादकुरुल वस्त्र आभूषणोंको पहनकर नगरकी ओर जा रहे थे (णम्मायकुरुल) शिखरपर पहुंचता है जहाँ मगधेशकी कि एक प्रमत्त गज आकर सबको त्रस्त कर देता है सेनाका स्कंधावार था, जम्बूने उतरकर उनसे भेंट की। जब सब भयभीत होकर भाग रहे थे जम्बू उसे वीरता गगनगति सबका राजासे परिचय कराता है मृगाङ्ककी पूर्वक परास्त कर देते हैं (सन्धि ४)। पुत्रीसे शुभ मुहूर्तमें जम्बूका विवाह होता है। जम्बू वीरताके इस कार्यसे प्रसन्न होकर राजाने जम्बू जिस समय अपने नगरमें प्रवेश कर रहे थे उपवनमें 3 महर्षि सुधर्मस्वामी पश्च शिष्यों सहित आते हैं। कुमारको अपने बराबर आसन दिया। जब यह राजसभा चल रही थी उसी समय आकाशसे, एक महर्षिको जम्बूस्वामी भक्तिपूर्वक नमस्कार करते हैं विमान वहाँ पहुंचा और एक विद्याधर सम्मुख उप (सन्धि ६-७)। . स्थित हुआ। उसने अपना निवास सहससिंग' नगरी मुनिसे जम्बूस्वामी अपने पूर्व-भावोंका वृत्तान्त में बताया तथा उसका नाम गगनगति था। उसने सुनते हैं और तदनन्तरे घर आकर माता पिताको बताया कि केरल नगरीके राजा मृगाङ्कने उसकी बहिन प्रणाम करके प्रव्रज्यावत लेनेका विचार करते हैं। मालतीसे विवाह किया है और उसकी पुत्री विलास- पुत्रके ऐसे वचन सुनकर माता मूर्छित हो जाती है। वती अत्यन्त रमणीय है। हंसद्वीपमें निवास करने जम्बूको वह समझाती है कि उसके वैराग्य लेनेसे कुल वाले विद्याधरसे रत्नसिंहने मृगाङ्कसे उस कन्याको विलीन हो जावेगा । इसी समय सागरदत्तके द्वारा माँगा । राजाके न देनेपर उसने केरलनगरीपर कुमारी प्रेषित व्यक्ति आकर जम्बूका विवाह निश्चित करता है को लेनेके लिए धावा कर दिया । वह विद्याधर जम्बूसे और सागरदत्तकी चार कन्याओंसे जम्यूका विवाह Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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