________________
३९४ ]
अनेकान्त
[वर्ष है
पवित्र स्थान चन्द्र भइया !" नर्सने आँसू भरकर किया । कहा-"आप मुझे 'भझ्या' कहनेका अधिकार दे "मैंने कहा न था चन्द्र, कि बहिनको तुमसे अलग दीजिये।"
न होने दूंगा!" किशोरकी आँखें गीली हो गई। ___ "तुम कहोगी मुझे भइया ? मेरी बहिन बनोगी, “हाँ किशोर !” चन्द्रने आँखें बन्द कर ली। मुझे जीवनका दान दोगी ? मेरे निरुत्साह और 'अब तुम आराम करो, मैं जाता हूँ। फिर निराश जीवनमें उत्साह और आशाकी ज्योति प्रदीप्त आऊँगा । पर अब भागना नहीं और न अपने किशोर करोगी देवी !” चन्द्रने नर्समें वही देवीरूप. देखा। से नफरत ही करना।" किशोरने व्यङ्ग किया। .. "हाँ भइया !" नर्सकी आँखोंसे झर-झर आँसू "मुझे क्षमा कर दो किशोर !” चन्द्रने पश्चात्ताप बह पड़े। .
किया । "तो आओ, मेरे गलेसे लग जाओ बहिन ! तुम "अच्छा यह सब पीछेकी बात है, हम निपट सचमुच मेरी बहिन हो, क्षमा जैसी ही ममतामयी हो लेंगे। अभी मुझे कई आवश्यक कार्य है, मैं जाता तुम ! क्षमा, मैंने तुम्हें पा लिया !” चन्द्रने नर्सको हूँ।" किशोर चल दिया। दरवाजेतक पहुँचकर वह छातीसे लगानेके लिये हाथ पसार दिये।
एक क्षण रुका। भाई और बहिनके सम्मिलनका दृश्य सचमुच "अपने भाईको भागने मत देना नर्स !” वह अपूर्व था। दोनोंकी आँखोंसे अश्रुधारा बह रही थी। मुस्कराया। डाकृर किशोरने इसी समय कमरेमें प्रवेश किया। "जी, आप विश्वस्त रहें, भइया अब नहीं __ "किशोर, डाकृर किशोर ! मेरी बहिन आ गई, भागेंगे।" मुस्कराहटके साथ नर्सने चन्द्रको देखा। क्षमा आ गई किशोर !” चन्द्रने किशोरका स्वागत हाँ, अब मैं नहीं भागूंगा।” चन्द्र भी मुस्कराया।
अपभ्रशका एक शृङ्गार-वीर काव्य
वीरकृत जंबूस्वामिचरित (लेखक-श्रीरामसिंह तोमर)
विक्रम संवत् १०७६में वीर कवि-द्वारा निर्मित पारंभिय पच्छिमकेवलहिं जिहं कह जंबूसामिहि ॥ जम्बूस्वामिचरित अपभ्रंशकी एक महत्वपूर्ण रचना इसी भूनिका-प्रसङ्गमें आगे कविने रस, काव्यार्थ है। प्रस्तुक कृतिके ऐतिहासिक पक्षसे सम्बन्धित एक के उल्लेख किये हैं और स्वम्भू. त्रिभुवन जैसे कवियों सुन्दर लेख प्रेमी-अमिनन्दन-प्रन्थमें श्री पं. परमानन्द तथा रामायण और सेतुबन्ध जैसी विख्यात कृतियोंजी जैनने लिखा है। यहाँ कृतिके साहित्यिक पक्षपर का स्मरण किया हैविचार किया जावेगा। कविने अपनी कृतिको सन्धियोंके सुइ सुहयरु पढइ फुरंतु मणे । अन्तमें 'शृङ्गार-वीर-महाकाव्य' कहा है किन्तु कृतिकी कव्वत्थु निवेसइ पियवयणे । । प्रारम्भिक भूमिकामें उसने कथा कहनेकी प्रतिज्ञा की है
रसभावहिं रंजिय विउसयणु ।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org