Book Title: Anekant 1948 10
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 31
________________ किरण १० ] आँसू बहाते देखा । “नर्स, चन्द्र कहाँ है ?” उसके स्वरमें तीव्रता थी । "जी, वह चले गए" नर्सने लड़खड़ाते स्वरमें उत्तर दिया । "कहाँ ?” डाकरके स्वर में भयानक आशङ्काजन्य नर्स कम्पन था । “अनजानी जगह । मैंने उन्हें बहुत रोका पर वे रुके नहीं,” नर्सने काँपते हुए जबाब दिया--"आपका अस्पताल जानकर वे एकक्षण भी नहीं रुके" उसने आगे कहा । "तो वही हुआ जिसका मुझे भय था । तुमने उसे बता ही दिया कि मैं उसका इलाज कर रहा हूं । वह मुझे अपनी बहिनका हत्यारा समझता है नर्स ! मेरी सूरतसे नफरत करता है वह । पर मैं क्या करता, मैं किसी से तो लड़ नहीं सकता। मैंने लाख प्रयत्न किए पर क्षमाको कालके गालसे न निकाल सका। मैंने उसे जो झूठा आश्वासन दिया था कि क्षमा अच्छी हो जायगी, वह सिर्फ उसकी रक्षाके लिये। क्योंकि मैं जानता था कि क्षमा ही उसके जीवनका सहारा है और उसके जीवनका अन्त चन्द्र के जीवनका भी अन्त है । इसलिये बहिनकी मृत्यु निश्चित जानते हुए भी मैं उससे छिपाये रहा और उसने मेरे कथनपर विश्वास किया । पर उस अँधेरी रात में जब दीपक बुझ ही गया मैं चन्द्रकी नज़रों में धोखेबाज बन गया । उसने धारणा बना ली है कि मैं ही क्षमाका हत्यारा हूँ. मैं उसे बचा सकता था पर मैंने उसे बचाया नहीं। मेरा मित्र मुझसे नफ़रत करने लगा । दया और ममताकी देवीके उठनेके साथ ही सारी दुनिया उसके लिये दया और ममतासे शून्य हो गई- वह पागल हो गया । चन्द्र- मेरा चन्द्रउसे वापस लाना होगा नर्स, उसे वापस लाना “।” डाकूर विह्वल हो उठा । "मैं आदमी भेजती हूँ ।" नर्स बाहर हो गई। ** * * चन्द्र अस्पताल से भागा तो, पर उसे कुछ भी ज्ञान था कि वह कहाँ जारहा है । वह सिर्फ इतना Jain Education International [ ३९३ ही जानता था कि वह डाकर किशोरकी सूरत भी नहीं देखना चाहता । विक्षिप्त मस्तिष्क और कमजोर शरीर आखिर टकरा गया सामनेसे आनेवाली मोटर कारसे । ड्राईवरके बहुत बचानेपर भी दुर्घटना हो ही गई और चन्द्र भूमिपर गिर पड़ा। उसका सिर फट गया । भीड़ एकत्र हो गई। डाकर किशोरका अस्पताल दूर न था । तत्परतासे उसे वहाँ ले जाया गया, जहाँ से कुछ समय पूर्व भागने के कारण ही यह दुर्घटना हुई थी । चन्द्र !” र किशोरकी आँखों में आँसू भर श्राये उसकी यह हालत देखकर | " तूने यह क्या किया चन्द्र !” डाकरके इस प्रश्न का उत्तर देता कौन ? दुर्घटनाके बाद ही चन्द्र बेहोश होगया था । उसका सारा शरीर रक्तमें सन गया था । “नर्स ! ऑपरेशनकी तैयारी करो. चन्द्र वापस आगया ।" किशोरने भये स्वर में कहा । जी डार !" आँसू पोंछती नर्स ऑपरेशन थिएटरकी ओर चल दी। * चन्द्रने आँख खोली । “अब आप अच्छे हैं ?” नर्सने उसके सिरपर हाथ फेरते धीरे से कहा । “मैं, मैं अच्छा हूँ ! मैं कहाँ हूँ, तुम कौन हो ?" चन्द्र समझ न पारहा था कि वह कहाँ है ? "आप अस्पतालमें हैं चन्द्र भइया !" नर्सको चन्द्रसे भाई जैसा स्नेह होगया था । मोटर दुर्घटना में पड़ जानेसे आपके दिमागको चोट पहुँची थी, लेकिन अब सब ठीक है, ऑपरेशन स आप उनसे मिलेंगे चन्द्र अभी आते ही होंगे भइया!" नर्स अभी भी उसके सिरपर हाथ फेर रही थी । "भइया, तुमने मुझे भइया कहा । पर तुम तो क्षमा नहीं हो। वह तो चली गई मुझे छोड़कर ।" चन्द्र आँखें फाड़कर नर्सको देखा । * “हाँ, मैं क्षमा नहीं, पर क्षमाकी भाँति ही मैं श्रापकी सेवा कर सकती हूँ। मुझे दे दीजिये क्षमाका For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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