Book Title: Anekant 1948 10
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

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Page 28
________________ ३६० ] अनेकान्त - [ वर्ष ६ उनके पुत्र ठक्कुर नीनेक उनकी धर्मपत्नी पाल्हणिने तथा जैसवाल वंशोत्पन्न बाहड़ उनकी धर्मपत्नी सं० १२१४ के फागुन वदी ४ सोमवारको प्रतिष्ठा सिवदे उनकी पुत्री-सावनी-मालती-पदमा-मदनाने कराई । कर्मो के क्षयके लिये प्रतिदिन नमस्कार उक्त सम्वत्में उक्त महात्माओंके आदेशसे अपने करते हैं। द्रव्यका सदुपयोग किया। . मूर्तिका शिर नहीं है। बाकी तमाम अङ्गोपाङ्ग मूर्तिके आसनके अतिरिक्त शिर और धड़ कुछ विद्यमान हैं। चिह्न शेरका है। हथेली कुछ छिल गई भी नहीं है। आसनसे पता चलता है कि प्रतिविम्ब है। करीब श। फुट ऊँची पद्मासन है । पाषाण मनोज्ञ थी । चिह्न शेरका है। करीब २ फुट ऊँची काला है। पद्मासन है। पाषाण काला है। लेख नम्बर २४ लेख नम्बर २७ ___संवत् १२०९ अषाड़ वदी ४ शक जैसवालान्वये सम्वत् १२१० मइडितबालान्वये साहु श्रीसेठो भार्या नायक श्रीसाहुकसस प्रतिमा गोठिता। महिव तयोः पुत्राः श्रील्हा-श्रीबर्द्ध मान-माल्हा, एते श्रेयसे - भावार्थ:-जैसवालवंशोत्पन्न नायक श्रीसाहु प्रणमन्ति नित्यम् । बैशाख सुदी १३। . कससने सम्बत् १२०६ के अषाढ़ वदी ४ शुक्रवारको ___भावार्थः-वि० सं० १२१८के वैशाख सुदी १३को प्रतिमा प्रतिष्ठा कराई। मइडितबालवंशोत्पन्न शाह सेठो उनकी धर्मपत्नी मूर्तिका शिर और दोनों हाथोंके पहुँचे नहीं हैं। महिव उनके पुत्र-श्रील्हा-श्रीवर्द्धमान-माल्हा ये सब वाकी हिस्सा ज्योंका त्यों उपलब्ध है। चिह्न शेरका है। पुण्य वृद्धिके लिये प्रतिदिन प्रणाम करते हैं। करीब १।। फुट ऊँची पद्मासन है। पाषाण काला है। मूर्तिका शिर और दोनों हाथोंकी हथेली नहीं है। लेख नम्बर २५ बाकी तमाम हिस्सा उपलब्ध है। चिह्न सेहीका प्रतीत ___ संवत् १२१३ गोलापूर्वान्वये साहु साल्ह भार्या सलषा होता है। करीब १।। फुट ऊँची पद्मासन है । पाषाण तयोः सुत पोखन एते प्रणमन्ति नित्यम् । आषाड़सदी २। काला है। पालिश चमकदार है। . भावार्थः-गोलापूर्ववंशोत्पन्न शाह साल्ह उसकी लेख नम्बर २८ धर्मपत्नी सलषा इन दोनोंके पुत्र पोखन इन्होंने संवत् सम्वत् १२०२ चैत्रसुदी १२ लमेचुकान्वये साहु भाने १२१३के अषाढ़ सुदी २को प्रतिविम्ब पधराई । ये भार्या पद्मा सुत हरसेन, नायक कदलसिंह, देवपाल्ह नित्य प्रणाम करते हैं। एते प्रणमन्ति नित्यम् । मतिका शिर और दोनों हाथोंके अतिरिक्त बाकी भावार्थः-वि० सं० १२०२के चैतसुदी १२को धड़ उपलब्ध है। चिह्नकी जगह अष्टदल कमल है। इस प्रतिविम्बकी प्रतिष्ठा हुई। लमेचूवंशोत्पन्न शाहकरीब १।। फुट ऊँची पद्मासन है। पाषाण काला है। भाने. उनकी पत्नी पद्मा, उनके पुत्र हरसेन, नायक लेख नम्बर २६ कदलसिंह. देवपाल्ह ये प्रतिदिन प्रणाम करते हैं। संवत् १२१६ फागुन वदी ८ सोमदिने सिद्धान्तश्री मूर्तिका शिर तथा बायाँ हाथ नहीं है। आसनसागरसेन आर्यिका जयश्री रिषिणी रतनरिषि प्रणमन्ति पर दोनों हथेली नहीं है । चिह्न वगैरह कुछ नहीं। नित्यम् । जैसवालान्वये साहु बाहेडभार्या सिवदे पुत्री करीब १।। फुट ऊँचो पद्मासन है। पाषाण काला है । सावनी मालती पदमा-मदना प्रणमन्ति नित्यम् । लेख नम्बर २६ ___ भावार्थ:-संवत् १२१६के फागुन वदी ८ सोम- संवत् १२०० अषाड़वदी ८ जैसवालान्वये साहु को सिद्धान्तश्री सागरसेन तथा आर्यिका जयश्री और खोने भार्या जाउह सुत साढू तथा पाल्ह-वील्हा-आल्हेश्रीरतनऋषिने विम्ब-प्रतिष्ठा कराई। पदमा श्रेयसे प्रणमन्ति ।। (क्रमशः) Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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