Book Title: Anekant 1948 10
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Jugalkishor Mukhtar

View full book text
Previous | Next

Page 20
________________ ३८२ ] हिंसा में आस्था रखने वालोंने तो उनकी आलोचना की ही, किन्तु अहिंसावादियोंने भी कोई कोर-कसर उठा नहीं रखी, पर वे विचलित नहीं हुए । आजसे कुछ सौ वर्ष पहले यदि गाँधी उत्पन्न हुए होते तो शायद ही आजकी दुनिया यह विश्वास करती कि धरतीपर ऐसा भी व्यक्ति हो सकता है । प्रत्येक अहिंसावादी के सामने - यह प्रश्न साकार हो उठता है कि क्या उसमें वही आत्मा है जिसके बलपर गाँधीजी इस घोर हिंसक और विज्ञानवादी युगमें श्रद्धा और अहिंसापर जीते रहे । जिए ही नहीं, उन्होंने भौतिक शक्तियोंपर विजय प्राप्त की ! और एक दिन दुनियाने दुख और आश्चर्य से सुना कि उनकी विजयी आत्मा, एक विक्षिप्त व्यक्तिकी गोलीका शिकारे होगयी । हम जीकर जीते हैं, पर गाँधीजी मरकर भी जिए। अहिंसा व्यापक तत्त्व है, उसे किसी शास्त्रीय मर्यादा में नहीं बाँधा जा सकता; उसपर भी गाँधीजी ऐसे समयमें जन्मे थे जब उन्हें विचित्र समस्याओं का सामना करना पड़ा उन्होंने अहिंसाका अभ्यास शास्त्रसे नहीं जीवनसे किया था । अपना यह जीवन गुजरातकी लोकसंस्कृतिसे बहुत अनुप्राणित है, वहू ठीक उस प्रदेशके थे जहाँ आजसे कई हजार वर्ष पहले एक ‘राजकुमार' पशुओं के आर्तनादसे विरक्त होकर वनमें तपस्या करने चला गया था; उसका नाम नेमिकुमार था, शुरूमें इसकी चर्चा आचुकी है। ऐसा लगता है कि उनके तपस्वी जीवनका प्रभाव अब भी गुजरात के वायुमण्डलमें व्याप्त है । महापुरुष जीवनकालमें जनताको प्रभावित करते हैं पर मरनेपर उनके संस्कार—कणकणमें भर जाते हैं ? और हजारों सदियों बाद, वे पुनः नये दशकी प्रेरणा देते हैं ? नेमिकुमारके समय क्षत्रिय-वगके आमोद-प्रमोदके लिए—पशुओंकी हत्या होती थी परन्तु गाँधीयुग में मनुष्यकी दशा पशुओंसे भी अधिक दयनीय हो उठी थी ? ब्रिटिश सङ्गीनोंने समूचे देशके चैतन्यको कुचल रक्खा था ? उससे उद्धार पाना आसान नहीं था। मैं समझता हूं भारतीय इतिहासमें जितना काम गाँधीके सिरपर आया, उतना किसी दूसरे व्यक्तिपर नहीं । Jain Education International अनेकान्त [ वर्ष गाँधीजी अहिंसक परम्पराकी ही एक कड़ी थे ? इसी दृष्टिसे उनकी अहिंसाकी परख करनी चाहिए ? उनकी मृत्यु के बाद पुनः हिंसा और अहिंसाका प्रश्न हमारे सामने हैं। गाँधीवादियोंकी असफलताने इस प्रश्नको और भी उम्र बना दिया है ? स्वतन्त्र होनेके बाद देशके सामने अनेक समस्याएँ हैं और यदि उनका हल नहीं हुआ तो निश्चय है कि देशमें पुनः नई व्यवस्थाओं को जारी करनेके लिए क्रान्तियाँ होंगी ? गाँधीजी या अहिंसाके नामपर उन – क्रान्तियों को रोका नहीं जा सकता ? धीरे धीरे ये शक्तियाँ जोर पकड़ रही हैं । शक्ति पानेके बाद जो शिथिलता और कुण्ठित विचारकता आती है, वर्तमान शासन उससे वश्चित नहीं है ? धार्मिक - अहिंसावादियोंको अहिंसा, मुक्तिपरक - सी हो गई है ? वर्तमान जीवनकी समस्याओंसे उनका सम्बन्ध ही दिखाई नहीं देता; क्योंकि उनकी सारी चेष्टाएँ ऐसे प्रश्नोंके सुलझाने में लगी हुई हैं— जो इस लोकसे परे है ? नवयुवकों के जीवनमें विदेशी विचारधारा घर करती जा रही है; एक बार फिर यह प्रश्न हमारे सामने है कि क्या भारतोय संस्कृति - अपनी सामाजिक व्यवस्था के लिए किसी विदेशी काकोंको अपनाएगी ? व्यापार क्षेत्रइस देशके पूँजीपतियोंने सदैव पश्चिमका अनुगमन किया है। उसके विरोध में गाँधीजीने में महाप्रयाणके बाद ही विदा हो लीं ? और अब ग्राम्य सुधारकी बातें रक्खी थीं पर वे मानो उनके आर्थिक निर्माण एवं जनता के विकासका प्रश्न सामने हैं ? यदि किसी विदेशी विचारधाराने एक हर देशपर आक्रमण कर दिया तो यह निश्चित है कि हमारा, पिछले इतिहासका गौरव नष्ट हो जायगा, उसके बाद भारतीय इतिहास में अहिंसा कथावस्तु रह जायगी ? भावी इतिहास लेखक कहेंगे कि हमने गाँधीजीको पूजा पर उनकी धरोहर नहीं बचा सके ? सन्मति निकेतन, नरिया लङ्का, बनारस ) For Personal & Private Use Only ४ सितम्बर ४८ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48