Book Title: Anekant 1943 Book 05 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

View full book text
Previous | Next

Page 18
________________ किरण १.२ जैनकला और उसका महत्त्व - कहा गया है। और कलापरसे भारतकी पुरानी जातियोंके रंगरूप, दीलकुशनयुगकी मथुराकी पुरानी जैनकलामें इन उपयुक्त डील अंगोपाङ्ग, वस्त्राभूषण, अस्त्र-शस्त्र, श्रामन-वाहन, देवी-देवताओं को इतना महख दिया गया है कि अर्हन्त- कलाकौशल विद्या-पकम कला-कौशल, विद्या-पराक्रम, धन-वैभवका पग परा पता प्रतिमायोंके सिंहासनोपर तीथ करों के चिह्न न देकर केवल लगता है। इनमें कितने ही यक्षयतिणियोंके कई कई इन्हें ही उत्स्कीर्ण किया गया है। बीचमे धर्मचक्र, उसके मुंह और कई कई हाथ दिखाये गये हैं। कितनोंके मुंह दोनो ताफ दो हिरण, उनके पीछे एक अोर कुबेर, हाथमे पशु प्राकारके बने हैं, इनकी सवारीके वाहन बहुत ही धनकी थैली लिये हुए, दूसरी और हारिनी बार्य घुटनेपर अजीब हैं। उपर्युक यक्षोंके वाहन क्रमशः निम्न प्रकार हैं:बरचेको बिठाये हुये, प्रतिमाके श्रापपास ये दो चामरधारी १ बैल, २ हाथी, ३ मोर, ४ हाथी, ५ गरुड, और उनके ऊपर नवग्रह ।' कई मूर्ति-शिलाम्बराडॉपर ६ हिरण, ७ सिंह ८ कबूतर, १ कथा, १० कमल, जिनबिम्बोंके नीचे काली दुर्गा पार्वती, गणेश कुबेर ११ बैल, १२ हम, १३ मोर, १४ मच्छ, १५ मछली, श्रादिकी प्राकृनियों बनी हुई है। १६ सूअर, १७ पक्षि, १८ शंग्व, १६ हाथी, २० बैल, बन्दलखगड के प्राचीन नगर देवगढ के १२ वी शताब्दीके २१ बेल, २२ मनुष्य २३ करा, २४ हाथी। और एक जैनमन्दिर के बरामदेम उपर्युक, शासन देवियोंमे २० २० यक्षिणियों के वाहन क्रमशः निम्न प्रकार हैं- गरुन, देवियोंकी वाहन-पायुध-ग्राभूषण-महिन अत्यन्त मनोहर २ लोहामन ३ पनि, ४ हम ५ हाथी, ६ घोडा, ७ बैल, नोटासन मृतिया अभी तक मौजूद हैं। ८ भैया, ६ कश्रा. १० मृथर, ११ हिरण, १२ मच्छ, जैन माहि यम जहां कहीं जैनमन्दिरों और अन्न- १३ नाग, १४ हंस. १५ शेर, ५६ मोर. १७ मुअर, बिम्बका वर्णन अाया है वहां उन्हें यक्षमिथुनकी मूर्तियों १८ हंस. १६ अष्टापट, २० नाग, २१ मरल, २२ शेर और चित्रांप संयुक बतलाया गया है। श्राज भी बहुधा २३ कमल , २४ शेर । जैन मगम तीर्थका-मूर्तियों दाय बाय मिथुनयतकी इन के कितने ही प्रकार के रंग-रूप, डील डौल, वेषभूषा, मुनिया स्थापित हुई मिलती हैं । किनमे ही मन्निगेंमें अमन-शस्त्रोंसे पता लगता है कि ये लोग मुर-असुर, यक्षतीथरीकी मूर्तियों पे पृथक भी यक्ष-यक्षणियों की मृतिया राक्षस, भून प्रेत, विनायक कृष्माण्ड श्रादि अनेक जातियों में रग्बी हुई मिलती हैं । गन्धर्व और अप्पगोकी अनेक बँटे थे। ये बड़े पराक्रमी और समृद्धिशाली थे। इनके मर्निया और चित्रस्तूपों तथा मन्दिरके द्वारी. स्तम्भों श्रीर कई-कई मुँह और हाथाये. कितने ही मानवी और पशु गुबदाम नाचती गाती और अनेक प्रेमपणं क्रीडा करती समान चेहरोये पता लगता है कि ये बड़े मायावी थे, ये हुई दिग्याई देती हैं। इसके लिये मथुराके पगने स्तूपोंके अपने कई तरह के मौम्य और भैग्वरूप बनाना जानते नोरणद्वार और ११वी ई० शताब्दीका बना हुअा अाबृका थे।" इनके अजीब-अजीब पशु-पक्षिरूप वाहनोंमे पता देलवाडा मन्दिर विशेष दर्शनीय है। लगता है कि ये बड़े कलाकुशल थे- तरह तरह के पशुइन यक्ष-यक्षणी, गन्धर्व, अप्सरा-मम्बन्धी साहित्य । पक्षियों के प्राकार वाले वाहन बनाकर उनमें सवार होते थे। १-वाम्नुमार परकगा-जयपर-म ।६३६-०६-६४ और शायद उनसे श्राकाशमं भी उड़ने थे। इनकी विविध २ Catalogue of the Archeological Mus-५ (अ) "कर्मभूमी भारते मनुष्य बद्दवो देवा.” ॥ १३४ ।। eum at Mathura, 1910 Image No. B, मुगसुग्यक्षराक्षमभूत येतविनायककुशमाण्डविकृताननाः 65, B.75. ॥१३५॥ निरुद्धाभारवेषाः ।।१३६।। मौम्य भैरवा योगि३ Ibid catalogue मूर्तिशिना नं.D.६, D.. न्यत्र नागाश्च मानवै. मद रूपरम: अमरख्याता संचरन्ति ४ त्रिलोकसार ६८-६८६, यशस्तिल कचम्यू - ५वा श्राश्वाम ||१३७|| -वाईस्पत्य अर्थशास्त्र अध्याय ३ पृ० २४६ (निर्णयसागर प्रेम, १६०३) । (श्रा) मायेत्यसुराः । शनबा. १०.५-२-२०

Loading...

Page Navigation
1 ... 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 ... 460