________________ र्मासिक प्रायश्चित्त, बारहवें से 19 वें उद्देशे तक लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त एवं 20 वें उद्देशे में प्रायश्चित्त की विधि का वर्णन है। यह कालिक सूत्र है इसे नववें प्रत्याख्यान पूर्व की तृतीय वस्तु के बीसवें प्राभृत से उद्धृत किया गया। 4 दसासुयक्वंधो-दशाश्रुतस्कंध नामक चतुर्थ छेद सूत्र में दस दशा (अध्ययन) है। इसमें असमाधि के 20 स्थान, 21 सबल दोष, 33 आशातना, आचार्य की आठ संपदाएं व उनके भेद, चित समाधि के 10 स्थान, श्रावक की 11 प्रतिमाएँ, साधु की 12 प्रतिमाएँ, पंच कल्याणक, महामोहनीय कर्म बंध के 30 स्थान तथा नव निदान का सविस्तृत वर्णन है / यह कालिक सूत्र है / दस अध्ययन होने से इसका नाम दशाश्रुतस्कंध है। चार मूल सूत्र 1 दसवेयालियसुत्तं-दशवकालिक नामक प्रथम मूल सूत्र में 10 अध्ययन और दो चूलिकाएँ है / इसकी रचना 14 पूर्वधर श्री शय्यंभवाचार्य ने अपने पुत्र मनक शिष्य के लिए पूर्वो एवं अंगशास्त्रों में से उद्धृत करके की है। इसमें 10 अध्ययन है और इसे विकाल में भी पढ़ा जा सकता है अतः इसका नाम 'दशवैकालिक' है। 2 उत्तरज्झयणसुत्तं-उत्तराध्ययन नामक द्वितीय मूलसूत्र में विनयश्रुत आदि छत्तीस उत्तर अर्थात् प्रधान अध्ययन है इसलिये यह सूत्र उत्तराध्ययन सूत्र कहलाता है / स्वयं श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने मोक्षगमन . के समय यह सूत्र फरमाया था / यह कालिक सूत्र है। - 3 नंदीसुतं-नंदीसूत्र नामक तृतीय मूलसूत्र में संघ स्तुति, स्थविरावली परिषद् एवं पाँच ज्ञान का स्वरूप सविस्तार से वर्णित है / नन्दी का अर्थ हैमंगल या हर्ष / हर्ष एवं मंगल का कारण होने और पांच ज्ञान का स्वरूप बतलाने वाले होने से यह सूत्र नन्दी कहा जाता है / यह उत्कालिक सूत्र है। ___4 अणुओगदारसुत्तं-अनुयोगद्वार चौथा मूल सूत्र है / 'अणु' अर्थात् संक्षिप्त सूत्र को महान् अर्थ के साथ जोड़ना अनुयोग है अथवा अध्ययन के अर्थ व्याख्यान की विधि को अनुयोग कहते है। अनुयोगद्वार सूत्र में आवश्यक, उपक्रम, आनुपूर्वी, दश नाम, प्रमाण, निक्षेप, अनुगम और नय का सविस्तृत