________________ संपादकीय अनंगपविटु सुत्ताणि का यह द्वितीय भाग धर्मप्रिय स्वाध्यायशील पाठकों के करकमलों में पहुँचाते मुझे परम हर्ष हो रहा है / जिनागमों के उपांग विभाग में प्रथम चार उपांग सूत्र अनंगपविट्ठ सुत्ताणि भाग 1 के रूप में फरवरी 1984 में प्रकाशित किये गये। इस पुस्तक में आगमबत्तीसी के शेष उपांग सूत्र, चार छेद, चार मूल सूत्र और आवश्यकसूत्र का समावेश किया गया है। इनका संक्षिप्त विषय विवरण इस प्रकार है 5 नंबद्दीवपण्णत्ती-जंबूदीप-प्रज्ञप्ति नामक इस पंचम उपांग सूत्र में जंबूद्वीप के क्षेत्र, पर्वत, द्रह, नदियाँ, कूट, कालचक्र ऋषभदेव भगवान् तथा भरत चक्रवर्ती का जीवन चरित्र, ज्योतिषी चक्र आदि का विस्तार से वर्णन है / यह कालिक सूत्र है / इसमें 10 अधिकार है। 6 चंदपण्णत्ती-चन्द्रप्रज्ञप्ति नामक छठे उपांग सूत्र में चन्द्र की ऋद्धि, मंडल, गति, गमन, संवत्सर, वर्ष, पक्ष, माह, तिथि, नक्षत्रों का कालमान, कुलं व उपकूल के नक्षत्र आदि का वर्णन है। यह कालिक सूत्र है। इसमें 20 प्राभृत हैं। इसका विषय गणितानुयोग है। 7 सूरियपण्णत्ती-सूर्यप्रज्ञप्ति नामक सातवें उपांग सूत्र में सूर्य की गति, मंडल, स्वरूप, प्रकाश, लेश्या प्रतिघात, संवत्सर, नक्षत्र आदि का सविस्तृत वर्णन है / यह उत्कालिक सूत्र है / इसमें भी 20 प्राभृत है। .. 8 मिरयावलियाओ-निरयावलिका नामक आठवें उपांग सूत्र में राजा श्रेणिक के कालकुमार आदि दस पुत्रों का युद्ध में लड़ते हुए मारा जाना, उनकी गति आदि तथा कोणिक का जीवन चरित्र, रथमसल संग्राम शिलाकंटक संग्राम आदि का विस्तृत वर्णन है। यह कालिक सूत्र है। इसमें 10 अध्ययन है। 9 कप्पडिसिया-कल्पावतंसिका नामक नौवें उपांग सूत्र में कोणिक राजा के पुत्र कालीकुमार के पद्मकुमारादि दस पुत्रों का श्रमण भगवान्