Book Title: Alpaparichit Siddhantik Shabdakosha Part 3
Author(s): Anandsagarsuri, Sagaranandsuri
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 16
________________ आ 'श्रीअल्पपरिचितसैद्धान्तिक शब्दकोष' माटे हवे पछी 'अ. सै. श. ' एवी संज्ञानो उपयोग कराशे. जे शब्द अने तेना अर्थो-अ. सै. श. मां जे शब्दो जणाव्या छे ते शब्दो घणे भागे तो जेवा वाज राखवामां आव्या छे. अर्थात् अकार अने थोडा आकार सिवायना बाकी बधा शब्दो मूलना छे ते अर्धमागधीमां छे अने टीकाकारोए टीकामां आपला जे शब्दों जे भाषामा छे ते भाषामा मोटे भागे कायम राख्या छे, एटले के अकार अने थोडा आकारमां आवेला संस्कृत शब्दो अर्धमागधीमां पण आप्या छे. शब्दोना बहुश्रुत टीकाकारोए भिन्न भिन्न टीकाओमां भिन्न भिन्न अर्थो कर्या छे, तेथी भिन्न भिन्न स्थलोमाथी ते ते अर्थो लईने ते ते टीकाकारोना अर्थाने कायम राख्या छे. आ कारणथी आ अ. सै. श. मां छेदना त्रगना ज शब्दो लेवामां आव्या छे तेमज बृहत्कल्प जेवा को कमां आगमोद्धारक गुरुदेवश्रीना हाथना उतारेला शब्दों छे. तेमां टीकाकारोना आधारे अर्थोनु टुंकाववा - पण पण छे. आ अ सै. श. मां भिन्न भिन्न शब्दो व्याकरणना प्रयोगो रूपे, कोई तेवां नामो रूपे, कोई इतिहास तरीके, कोइ भूगोल तरीके तथा कोई पर्यायो तरीके पण आव्या छे. काचो खरडो -- शरुआतमां लहियो एकेक आगम लईने कापलीमां ते शब्दने ऊतारतो अने टीकाकारनो बतावेल अर्थ लक्ष्यमां आवे तो ते अर्थ लखतो. आवी रीते ऊतारेली छुटी कापलिओने प० पू० आगमोद्धारकगुरुदेवश्रीना विनयगुणसंपन्न, तीक्ष्णबुद्धि, स्वर्गस्थ मुनिराज श्रीमहेन्द्रसागरजीए अकारादि क्रममा गोठवी कागलमां सलंग चोटाडीने तैयार करी ते उपरथी ए लखाण लहिया आदि द्वारा लखावीने तेमज तेओश्रीए ( श्रीमहेन्द्रसागरजीए) पोते पण लखीने काचो खरडो तैयार कर्यो. प्रकाशननी तैयारी - -आ अ. सै. श. ने छपाववानी पर ता० आगमोद्धारकगुरुदेवश्रीनी घणी इच्छा हती. तेथी लगभग ऋण दशका उपर सद्गृहस्थो पासेथी अ. सै. श. ना प्रकाशनने अंगे रूपिइया शेठ देवचन्द्रलालभाई जैन पुस्तकोद्धारक फंडने अपाव्या हता. ते पछी वि० २००४ मां ते संस्थाए आ अ० सै० श० छपाववा माटे ठराव कर्यो. आथी मुद्रणपुस्तिका करवा कार्य पू० स्व० मुनिश्रीमहेन्द्रसागरजी म० ना शिष्य मुनिश्री सौभाग्यसागरजीने ( ते ओश्रीना लघुबन्धुने ) सोपा'. तेथी तेओ दरेक आगमना ते ते पत्रमां ते ते शब्दो मेलवता अने तेना अर्थाने पण मेलवता. तेमज ज्यां टीकाकारना शब्दो लेवाना हता त्यां प० ता० आगमोद्धारकगुरुदेवश्री पाथी तेना मूल शब्दो बनावी लेता अने जे शब्दोना अर्थ टीकाकारे न आप्या होय तेना अर्थो पण पूछी लेता. आवी रीते तेमाणे लगभग बार फर्मा सुधीनु मेटर तैयार कर्यु. उपर जगावेली संस्था ( दे + ला ) ना ट्रस्टीओए प० ता० आगमोद्वारकगुरुदेवश्रीनी जीवन पर्यंत सेवा करनार मुनिराज श्रीगुणसागरजी महाराज पासेथी आ (कोपीनु) लखाण मेलव्यु अने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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