Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 10
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 164
________________ 免染染杂杂杂杂杂杂杂杂杂杂杂 श्री महानिधिसूत्र :: अययन पज्जले रदं / शेखणा फुरफुरंती सा, जातिथहे के चिराइ // 267 // निसाए निभरं सायं, खंडोठी ताव पिछ / तं ददई या चुल्लिं, दित्तं घेत्तुं समागथा // 26 // तं परिघरियां गुज्झते, फालिया जाव हियययं / जाव दु. क्वभरमकता. चलघुलेबील्ल करेसा // 29 // नासा पुणो विचिंते, जावजीवं ण उड्डए / ताव देमी से दाहाई, जा मे भवराएऽवि // 27 // . न नई पिथथमं काउं. इमामो पहिसभरंति था। लाहे गोयम / आणे, चक्कियसालाउ अरामयं // 27 // तावितु मुलिंगमेल्लंत, जोगीए पक्चिन फुलं / एक दुख. भरमकता, ती मरिऊण गोयमा / // 272 // उखन्ना चक्कवहिररस, महिलारयणतेण सा। इओय रंडपुत्तस्य,महिला ते कलेवरं // 273 // जीवन्झियंपिरोसेण, धेनुं सुसु. हमयं सा / साणकारामाही, जाव पत्ते दिपो दिन // 21 // तार रंडापुत्तोविबाहिरभूमोउ आगी। सोय पशुणे णाउं, वह मणसा रियायि। गंतण साहपामल पन्ना काउ नि हो // 20 // अह सो लम्वयादेवीए, जीवो मंडो. दतीयत्तगा। इत्थीरयणं भक्तिाणं, गोथमा! अदिउथ सो // 276 // तन्ने रइयं महादुकावं, अघोरं दारयंत. हिं। निकोटो निरयावासे, सुचिरं दुल्वेण वे // 20 // इहागओ समपन्नो, तिरियजोगीए गोथमा।। साणलेणाह मथकाले विलम्गो मेहणे तहि // 27 // माहिसिएणं कानो घाओ, विच्चे जोणी समुच्छला / तत्य किमिएहि दस वरिसे, स्वदो मनिऊण गोथमा ! ॥२७६॥उवबन्नो सत्ताए, तोनि मरिण गोथमा।। एगणं जाव सथवार, आमगठमेन्सु पच्चिभो // 20 // . जम्महरिहस्स गेहमि, माणुस समागओतत्य दो मासजाथम्स, साया पंचत्तमुबगथा // 20 // ताहे 28TRESSEEEEEEEE

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