Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 10
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 162
________________ 獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎獎 मी महानिशीथसूत्र:: ययनं 159 सुझिज्जएमिमीए, इति पसिद्धा अहं जगे ॥२३६ाता / आलोयणं देमि, ता एवं पथडीभवे। मम भायरो पिया माया, जाणिस्ता इंति स्विए // 237 // अहया कहविपमा. एणं, जं मे मणसा विचिंतिथं / तमालोक्यं नधा,मझ वग्गस्स को दुहे 1 // 238 // जायेयं चिंति गरछे, तावुठंतीए करणी फुड़ियं दसति पाथयले, ता णिसत्ता यड़ ल्लिया // 239 // चिंते अहो एत्य जम्मंमि, मज्झ पायंमि के. रगं / ण कयाइ खुत्तं ताकि,संपयं एत्य होहिई 1 // 24 // अहवा मुणियं तु परमत्थं, जाणगे (मए) अणुमती कया। संघरतीए चिडल्लीए, सील तण विराहियं // 25 // ' मूर्यधकारबहिरंपि, कुठं सिडिविडियं विडं / जाव सीलं नखंडे, ता देवहिं धुवई२१२॥ कंटगं चेव पाए मे, खुत्तमागासगामियं। एएणं जं महं चुक्का, तं मे लाभं महंतिथं // 243 // सत्तवि साहाउपायोले, इत्थी जा मणसाविय। सीलं खंडेई साणे, कहं जगणीए में मं? // 254 // ताण णिवडई वज, पंसुविट्ठी ममोरिं। सयसम्करं ण फुहर वा हिथयं महरिगं वरं जा मंथमालोयं ता लोगा एत्य चिंतिही। जहाऽमुगरस ध्याए, एथं मणसा. अन्झवसिथं // 256 // तं नं नहवि पओगेणं, परववयुसेशालोमो / जहा जड़ को एयमझवसे, परिधत्तं तरस हो कि ? // 27 // चिय सोडण काहामि, तवेयां तय का. रणं। अंपुण भयवयाऽऽइदलं, घोरमच्यतनितुरं॥२०॥ तं स०वं सीलचारितं. तारिसं जाव नो कथं तविहंतिविहंगणीसम्लं, ताव पावेण वीथए // 29 // अह सा परवएसेणं, आलोएता तवं चरे। पायच्छितनिमि. तण, पन्नासं संवरछरे // 25 // छठ मइसम दुवालसेटिं, लथाहिं जेई इस बरिसे। अकयमकारियसंकप्पिए हिं, परिभूया भुज्ज) भिनख

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