Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 10
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 169
________________ 2RRRRRRRARY 87 श्रीभागमसुधासिन्धुः दशमो विभागः। निसं / कागणि कागणीकाओ, अवं पाथ विसोहगं // 30 // कत्थइ कहिचि कालेणं, लम्वं कोहि च मेलिउं। जा एतिरछा मई पुग्ना, बीथा जो संपज्जए॥३४॥ एरिसयं द्वल्ललियतं, सुकुमालतं च गोथमा।।धम्मारंभंमि संपडइ, कम्मारंभे न संपडे // 342 // जेणं जस्स मुहे कवलं. गंडी अग्नेहि धज्जए। भूमीए न हवए पाथ, इत्थी-- लक्रयेसु कीडए // 343 // तस्मावि भवे इच्छा, अन्नं सोऊण सारियं / समुहामि तं देस, अह सो आणं पडिछ3 // 34 // सामभेभीवपथाणाई, अह सो सहसा पनि / तस्स साहसतुलणदठा, गूढचरिएण वयइ // 345 // एगाणी कम्पडावीओ, दुगारन्नं गिरीसिरी / लंछित्ता बहुकालेणं, दुम्ब दुमरखं पत्तो नहि // 346 // दुवं युवामकंगो सो, जा भैमडे घराघरिं। जायंतो छिमस्साइं,तत्य जइ कहवि ण णज्जए // 347 // ता जीवंतो चुम्केज्जा, अह पुन्नेहि समुद्धरे। तो णं परिवत्तिय रे,तारियो स मिहे विसे // 34 // को तं सि परियणो सन्ने, ताहे सो असणादसू / नियचरियं पाथडेऊय, जुझसज्जो भवेउण // 349 // सबबल (जाण) थामेणं, संडावंडेण जुन्झिउं। अह तं नरि निजिणिइ, अहवा तेण पराजिए // 30 // . . बहुपहारगलंत हिरंगो, गथतुरयाउवह) अहोमुहो। गिवड रणभूमीए,गोयमा' सो जथा तया // 35 // तं तस्स दुल्ल लियतं, सुकमालतं कहिए जो केवलं सहत्येणं, अहोभागं च धोविर 352 // निच्छतो पायं उवि, भूमीप न कयाइवि। एरिसोऽवीस टुल्ललिओ, एथानन्थमुवागओ // 33 // जइ भन्ने धम्मचिठे ना, परिभण न सक्किमो। नी गोथमा। अहन्नाणं, पावकम्माण पाणिणं // 35 // धम्मदताणमि मई न कयानि भबिस्सए। एएसिसी धम्मो, शक्कजं- . मीण भासए // 3 // जहा स्वंतयियंताणं, सबं अम्हाया हो. BREEEEEEEEERE

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