Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 10
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
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________________ పోలిక కు కు కు भी आगमसुधासिन्धुः:: दशमो विभागः / णग्नसम, सामयमुहमुस्यदायग / सव्वलक्षण संपन्न, लिहुयणलच्छिवि भूसिया / / 310 / / - भय। परिवाडीए, सव्वं जंकिंचि कीरए / अ. धक्के हुँडिदुद्धेयं, कज्जतं कत्थ लगभई 1 // 311 / / सम्मरणमेगंसि, वितिथे जम्मे अणुब्बए। ततिए सामाश्थं जम्मे, चउत्थे पोसह करे // 312 // दुद्धरं पं. चमे बंभ, छठे सत्चित्तवजणं / एवं सत्तठनव- . इसमे जम्मे उहिटठमाड्यं॥३१३ चिरस्कारसमे जम्मे, समणतुल्लगुणो भवे / एथाए परिवाडीए,सं. जयं किं न अक्वासि 1 / / 314 // जे पुण सोया मइवि. गलो, बालथगो उब्विथा केरिसस्सव सई जगइ, जउइसिनासे दिसोदिसिं // 315 // तमीरिसं संजमं नाह!, सुदल्ललिथा 3 सुमालया। सोऊयपि नेरछति, तणुदी. सू कहं पूण // 316 // गोयम। तित्थंकरे मोत्तुं, मन्नो दुल्ललिओ जगे / जई अन्धि कोई ता भणउ, अहाणं सुकुमा. लओ 1 // 317 // जाणं. गल्भत्थाणंपि देविंद्रो.अमयमंगु. यं कयं / आहारं देइ भत्तीए, संथवं सययं करे . // 31 // देवलोगचूए संते, कम्मा से गं जहि धरे। अभि. जाएंति तहि सययं, हिरण्णवुटली परिस्सई॥३१९।। गल्भावनाण नसे, ईई रोणा य सत्तुणो / अणुभावेया खथं जति,जायभित्ताण तकवणे // 320 / / . आगंपिथासणा चउरो, देवसंघा महीहरे / अभि. सेयं सब्बिडडीए,का सत्थामे गया // 32 // अहो। लावन्नं कंती, दित्तीसवं अगोवमं। जिणाणं जारिसं याथों. गुटरगं ण तं इहं // 322 // सन्चेसु देवलोगेसू,सबदे. वाण मेलि / कोडाको गुणं काउं, जइवि उपहालिजए // 323 // भह जे अमरपरिगहिया, नायालयसमन्निया। कलाकलाबनिलभा जणमणायांकारया // 324 // सयणबंध SSSSSSSSSSSSSS .

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