Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 10
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala

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Page 172
________________ महानिशीधसूत्र :: अध्ययनं० दिप्यंतकुबलयकल्टारं, कुमुथसयम्सवणप्फ कुरुलियंने हंसकारण्डे, चम्चबाए सुगइ थ // 35 // जमटिठं, सप्तसुचि साहासु (अब चंद्रमंडलं)। तं दृटुं विम्हि. मो खणं, चिंते एयं जहा होही // 36 // एयं सगं . ताऽहं, बंधवाणं पसिमी। बहकालेणं गवेसे.ते थे. तूण समागओ // 37 // पण घोधियाररयणीए, भव. कियह चनहसीहि तु / ण पेच्छे जाव तं रिद्धिं, बहुकाल. निहालि // 388 // पूण करछभो नु जह उ, तहावितं रिविं न पेरछा / एवं चउगईभवगहणे, दुल्लहे माणुसत्तो। 389 // अहिंसालकवणं धम्म, लहिऊ जी पमाथई।सोपु. ण बहुभवलम्वेन्यु, दुकवेहि माणुसत्तण, लद्युपि न लभई धम्म, तं रिद्धि करछमी जहा // 390 // दियहाई हो व तिन्तिव, अद्धाणं होई जंतु लगे ण। सव्वायरेण तरसवि, संवलयं लेइ पविसंतो // 31 // जी पुण रोहपासी घुलसाईजोणिलकवनियमे / तस्स ... तवसीलमइयं संबलयं किं न चिंतेह 1 / 392 // जहर पहरे . दियहे मासे संक्रछरेय वोलंति। तहर गोयम जाणसु ट्रम्पले आसन्नर्थ मरयां // 36 // जर न नज्जइ कालं न य ओला नेय दियहपरिमाणं / नाराव नाथ कोवि जंगमि अजरामरी एत्य // 394 // पावी पमायसी जीवो संसारमज्जमुज्जुत्तो। दुस्खे हिं न निचिन्नो सुकवेहि न गोथमा। तिप्पे // 395 // जीवेण जाणि उ विसज्जियाणि जाईसएसु देहाणि / धेहि तभी सचलपि तिडयां होज पडिहत्य // 396 // नहदंतमुह भमुहल्लिकेस जीवेणा विप्पमुम्केसुवि। तमुवि हविज्ज कुलसेलमेश गिरिसन्निभेकडे // 397 // . हिमवत मलयमंदर दीवो दाहिधरीणसरिसरामीओ। अहिथयरो आहारी जीवेणाहारिभो भतहतो // 39 // गुरुक्य- . भक्त रस उन सुनिवाए जं जलं गलियं / तं अगड.

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