Book Title: Agam Sudha Sindhu Part 10
Author(s): Jinendravijay Gani
Publisher: Harshpushpamrut Jain Granthmala
View full book text
________________ महानिरीधसूत्र :: यनं , विसु 31 से भयवं / कहं ते समुवलम्खेज्जा ! गोयमा! उस्सुत्त उम्मग्गयरत्तणु हिसणभगुमइपच्चएण ॥सू०१॥ से भयवं! जेणं गणी किचियावस्सगं पमाएज्जा' गोथमा ! जे गं गणी अकारणिगे किंची खणमेगमविप. माए से गं अवंदे उवइसेज्जा, जेणं तु सुमहाकारगिगेवि संते गणी वणमेगमवी ग किंचि णिययावस्सगं पमाए से गंवढ़े पूए दृढव्ये जाव णं सिद्ध बुद्ध पारगए वीणठकम्ममले नीरए उवइसेज्जा, सेसं तु महथा पबंधणं सत्थाणे चेव भाणिहि // सू०१६॥ एवं परिधनविहि, सोऊण गाणुचिती अही. णमणो / मुंजइ य जहधामं,जे से आराहगे भणिए जलजलगदुइठसावयचोरनन्दिा हिजोगिणीण भए। तह भूयजक्रवरक्खसखुद्दपिसायाण मारीयां // 21 // कलिकलहवि. ग्घरीहगकंताराइसमुहमज्झे य। दुधितिय अवसउणे संभरियल्वा वह इमा विजा // 22 // पअस्पइजण आमडेण उअन्णज्झाणउम्म्एम्तवइकमउणआहएइम्पव्वाण आगउइहजपहरउचउशहम्महमुउभण्उमवादएउ आणअम्चउपहमइम्सुखक अलअम्घएहपइससअमचउ(प्रत्यंतरे झा. एहजन सम्इन्उजम्न मनउमम् एहइम्तश्व इक्कउन्ह इएहम्प-वान्आगओहइनरयहरउचउदुइममहसउउअणउमघइटए ओअन्अम्तउएहमइम्वधस्व क अउल्अमथएहवइसम्मतउ) एथाए पवरविज्जाए बिहीए अत्ताणगं समहिमंतिकणं इमे. ए सत्तकपरे उत्तमंगोमयखंधकुच्छीचलणतलेसु सं. णिज्जा तंजहानउम् उत्तमंगे कर वामखंधगीवाए उवामकुच्छीए उ वामचलणधले लए दाहिणचलण. यले स्वाँ दाहिणनुछीए हमा दाहिणधीवाए ।सू०१७॥

Page Navigation
1 ... 196 197 198 199 200 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210