Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Samaysundar, Haribhadrasuri, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

View full book text
Previous | Next

Page 731
________________ अथ दशवैकालिकसूत्रपावः। .903 असणं पाणगं वा वि, खाश्मं साश्मं तहा ॥ जं जाणिक सुणिजा वा, वणिमन पगमं श्मं ॥५१॥ तं नवे नत्तपाणं तु संजयाण अकप्पिकं ॥ दितिअं पमित्राश्के, न मे कप्पर तारिसं ॥ ५॥ असणं पाणगं वा वि, खाश्मं साश्मं तहा ॥ जं जाणिक सुणिजा वा, समणा पगडं मं ॥ ५३॥ तं नवे लत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पिरं ॥ दितिरं पमिश्के, न मे कप्प३ तारिसं ॥ ५५ ॥ उद्देसि कीअगडं, पूश्कम्मं च आह ॥ अनोअरपामिच्चं, मीसजाय विवजाए ॥ ५५॥ जग्गमं से अ पुलिजा, कस्सा पगडं कम ॥ सुच्चा निस्संकिअं सुधं, पमिगाहिज संजए ॥ २६॥ असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा ॥ फुप्फेसु हुज उम्मीसं, बीएसु हरिएसु वा ॥ १७ ॥ तं नवे लत्तपाणं तु संजयाण अकप्पिधे । दिति पमिआइरके, न मे कप्प३ तारिसं ॥ ॥ असणं पाणगं वां वि, खाश्मं साइमं तहा ॥ उदगंमि हुऊ निरिकत्तं, उत्तिंगपणगे सु वा ॥ एए॥ तं नवे नत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं ।। दितिरं पमिश्राइक, न मे कप्प३ तारिसं ॥ ६ ॥ असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा ॥ तेजम्मि हुऊ निस्कित्तं, तं च संघट्टिया दए ॥ ६१॥ तं जवे लत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं ॥ दितिशं पडिआइरके, न मे कप्पश् तारिसं ॥ ६ ॥ एवं जस्सिकिआ, उस किया, उजालिआ, पजालिया, निवाविश्रा, ॥ उसिंचिआ, निस्सिचित्रा, उवत्तिा उयारिया दए ॥ ६३ ॥ तं नवे नत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पिरं ॥ दितिरं पडिआश्के, न मे कप्पश् तारिसं ॥ ६ ॥ हुक क सिलं वा वि, इट्टालं वा वि एकया ॥ विरं संकमाए, तं च होऊ चलाचलं ॥ ६५ ।। ण तेण निरकु गनिजा, दिो तव असंजमो ॥ गंजीरं मुसिरं चेव, सबिंदिअसमाहिए ॥ ६६ ॥ निस्सेणि फलगं पीढं, उस्सवित्ता मारुहे ॥ मंचं कोलं च पासायं, समण एव दावए ॥ ६७ ॥ उरूहमाणी पडिवजा, हवं पायं व लूसए ॥ पुढविजीवे वि हिंसिका, जे अतन्निस्सिा जगे ॥ ६ ॥ ए आरिसे महादोसे, जाणिकण महेसिणो ॥ तह्मा मालोहडं निरंकु, न पमिगिएहंति संजया ॥ ६ए॥ कंदं मूलं पलंब वा, आमं छिन्नं च सन्निरं ॥ तुंबागं सिंगबेरं च, आमगं परिवाए ॥ ७० ॥ तहेव सत्तुचुन्नाइ कोलचुनाइ आवणे ॥ सक्कुलिं फाणिवे पूलं, अन्नं वा वितहाविहं ॥ ७१ ॥ विकायमाणं पसढं. रएणं परिफासिवे॥दितिनं पडियारके, न मे कप्पा तारिसं ॥ ७॥ बहुअघ्रिं पुग्गलं, अणिमिसं वा बहुकटयं ॥ अलिअंतिंडुरं विवं, नबुखंडं, व सिंवलिं ॥ ३ ॥ .अप्पो सिया नोअणजाए, बहु उज्य धम्मिए ॥ दंति पडिआख्खे, न मे कप्पश् तारिस ।। ४ ।। तहे वुच्चावयं पाणं, अवावारधोअणं ॥ संसेश्मं चाउलोदगं, अहुणाधोरं विवजए ॥ ५॥ जं जाणेज चिरा धोयं, मईए दंसणेण वा ॥ पडिपुचिमण सुच्चा वा, जं च निस्संकि नवे ॥ १६॥ अजीवं परिणयं नच्चा, पमिगाहिक संजए ॥ अह संकियं नविजा, आसाश्त्ता ण रोअए ॥ ७ ॥ थोवमासायणाए, हत्थगंमि दलाहि मे ॥ मामे अचंबिलं पूरं, नालं तिन्हं विणित्तए ॥ ७ ॥ तं च अचंबिलं पूर्य, नालं तिन्हं विणित्तए ॥ दितिरं पमिआख्खे, न मे कप्पर तारिसं ॥ Jए ।। तं च होऊ अकामेणं, विमणेण पडिबिरं ॥ तं अप्पणा न पिवे, नो वि अन्नस्स दावए ॥ ७० ॥ एगंतमवक्कमित्ता, अचित्तं पडिलेहिआ ॥ जयं परिणविजा, परिठप्प पडिक्कमे ॥ १॥ सिया च गोयरग्गगडे, इनिजा परिनुत्तुरं ।। कुगं नित्तिमूलं वा, पमिलेहित्ता फासुझं ॥ ॥ अणुन्नवित्तु मेहावी, पडिन्छन्नंमि संवुडं , हत्थगं संपमङित्ता, तत्य तुंजिक संजए॥ ३ ॥ तत्थ से ढंजमाणस्स, अन्झिं कंटजे सि ॥ तणकच्सक्करं वा वि, अन्नं वा वि तहाविहं ॥४॥ तं नरिकवित्तु न निरिकवे, आसएण न उडए । हत्येण तं गहेऊण, एगंतमवक्कमे ॥ ५॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738 739 740 741 742 743 744 745 746 747 748 749 750 751 752 753 754 755 756 757 758 759 760 761 762 763 764 765 766 767 768 769 770 771