Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Samaysundar, Haribhadrasuri, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 730
________________ उ०६ राय धनपतसिंघ बदाउरका जैनागमसंग्रह नाग तेतालीस-(४३)-मा. आलो थिग्गलं दारं, संधिं दगलवणाणि अ॥ चरंतो न विनिपाए, संकगणं विवाए ॥१५॥ रन्नो गिहवईणं च, रहस्साररिक आण य ॥ संकिलेसकरं गणं, घर परिवार ॥१६॥ पमिकुठं कुलं न पविसे, मामगं परिवऊए ॥ अचियत्तं कुलं न पविसे, चिअत्तं पविसे कुलं ॥ १७ ॥ साणीपाचारपिहिरं, अप्पणा नावपंगुरे ॥ कवाडं नो पणुविजा, जग्गहंसि अजाश्या ॥ १७ ॥ गोअरग्गपविजो अ, वञ्चमुत्तं न धारए ॥ ओगासं फासुझं नच्चा, अणुन्नविय बोसिरे ॥ १५ ॥ एणीअवारं तमसं, कुगं परिवाए ॥ अचरकुविस ज→, पाणा उप्पडिलेहगा ॥ २० ॥ जबपुप्फाइ बीआइ, विप्पन्नाइ कुछए । अहुणोवलित्तं नवं, दतूणं परिवजाए ॥२१॥ एलगं दारगं साणं, वगं वा वि कुठए ॥ उघिया न पविसे, विउहित्ताण व संजए ॥ २२॥ असंसत्तं पलोइजा, नाश्दूरा वलोअए ॥ चप्फुहं न विनिपाए, नियट्टिक अयंपिरो ॥ २३ ॥ अश्लूमिं न गन्छेजा, गोअरग्गगर्ड मुणी ॥ कुलस्स लूमिं जाणित्ता, मिश्र नृमि परक्कमे ॥ २४॥ त व पमिलेहिजा, नूमिनागं विअरकणो ॥ सिणाणस्स य वच्चस्स, संलोगं परिवऊए ॥ २५॥ दगमट्टियआयाणे, ब्रीआणि हरिआणि अ॥ परिवडतो चिडिजा, सबिंदिअ समाहिए ॥२६॥ तह से चिन्माणस्स, आहारे पाणनोअणं ॥ अकप्पिन गेण्हिडा, पडिगाहिक कप्पिरं ॥ २७ ॥ आहारती सिया तळ, परिसाडिऊ लोअणं ॥ दितिरं पडिआइके, न मे कप्प३ तारिसं ॥ २७ ॥ संमद्दमाणी पाणाणि, बीआणि हरिआणि अ॥ असंजमकरि नच्चा, तारिसिं परिवऊए । ए॥ साहट्ट निस्किवित्ताणं, सचित्तं घट्टिआणि अ॥ तहेव समणमए, उदगं सपणुविआ ॥ ३० ॥ आगहश्त्ता चलश्त्ता, आहारे पाणलोअणं ॥ दितिअं पडिआइके, न मे कप्पर तारिसं ॥ ३१॥ पुरेकम्मेण हलेण, दबीए नाणेण वा ॥ दितिरं पडिआइके, न मे कप्पर तारिसं ॥ ३ ॥ (एवं) उदलवे ससिणिणे, ससररके मट्टिआउँसे ॥ हरियाले हिंगुलए, मणोसिला अंजणे लोणे ॥३३॥ गेरुअवन्निअसेढिअ-सोरशिपिच्कुकुसकए ॥ उकिच्मसंस, संसठे चेव बोधवे ॥ ३४ ॥ असंसरण होण, दबीए नायणेण वा ॥ दिङमाणं न इबिजा, पञ्चा कम्मं जहिं नवे ॥ ३५॥ संसछेण य होण, दबीए जायणेण वा ॥ दिङमाणं पडिविजा, जं तलेसणि नवे ॥ ३६॥ पुण्हं तु मुंजमाणाणं एगो तब निमंतए ॥ दिङमाणं न इनिजा, बंदं से पडिलेहए ॥ ३७॥ पुण्हं तु मुंजमाणाणं, दो वि तब निमंतए ॥ दिजमाणं पडिविजा, जं तसणिअंजवे ॥ ३० ॥ गुविणीए उवणळ, विविहं पाणलोअणं ॥ तुंजमाणं विवजिजा, जुत्तसेसं पमिन्चए ॥ ३ए॥ सिआ अ समणमाए, गुषिणी कालमासिणी ॥ उघ्यिा वा निसीइजा, निसन्ना वा पुणुए ॥ ४ ॥ तं नवे नत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पियं ॥ दितिरं पडिआइरके, न मे कप्पश् तारिसं ॥१॥ श्रणगं पिऊमाणी, दारगं वा कुमारियं ॥ तं निस्किवित्तु रोअंतं, आहारे पाणलोअणं ॥ ४२ ॥ तं जवे जत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पिरं ॥ दितिरं पडिआइके, न मे कप्पइ तारिसं ॥४३॥ जं नवे नत्तपाणं तु, कप्पाकप्पमि संकि ॥ दितिरं पडिआइके, न मे कप्पर तारिसं ॥४॥ दगवारेण पिहिरं, नीसाए पीढएण वा ॥ लोढेण वा वि लेवेण सिलेसेण वि केण ॥१५॥ तं च उनिंदिया दिजा, समणका एव दावण ॥ दिति पंडिआइरेक, न मे कप्पश् तारिसं ॥ ४६॥ असणं पाणगंवा वि, खाइमं साइमं तदा ॥ जं जाणिक सुणिका वा, दाणा पगडं इमं ॥१७॥ तारिसं नत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पिरं । दितिरं पमियाश्के, न मे कप्पश् तारिसं ॥ ॥ असणं पाणगं वा वि, खाइमं साइमं तहा ॥ जंजाणिक सुणिका वा, पुणा पगडं श्मं ॥४॥ तं नवे नत्तपाणं तु, संजयाण अकप्पिअं॥ दितिअं पडिआइरकं, न मे कप्पड़ तारिसं ॥ ५० ॥

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