Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Samaysundar, Haribhadrasuri,
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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दशवैकालिकसूत्रपात.
177 तम्हा एवं विश्राणित्ता, दोसं मुग्गवडणं ॥ वानकायसमारंनं, जावजीवाइं वजए ॥ ४० ॥ वणस्सइं न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा ॥ तिविहेण करणजोएणं, संजया सुसमाहिआ ॥४१॥
वणस्सई विहिंसंतो, हिंस अ तयस्सिए ॥ तसे अ विविहे पाणे, चरकुसे अ अचरकुसे ॥४॥ . तम्हा एवं विआणित्ता, दोसं उग्गश्वढणं ॥ वणस्सइ समारंनं, जावजीवाई वजए ॥ ५३॥
तसकायं न हिंसंति, मणसा वयसा कायसा ॥ तिविहेण करणजोएणं, संजया सुसमाहिया ॥४॥ तसकायं विहिंसंतो, हिंसज तयस्सिए ॥ तसे अविविहे पाणे, चरकुसे अ अंचरकुसे ॥४५॥ तम्हा एवं विआणित्ता, दोसं उग्गवढणं ॥ तसकायसमारंनं, जावजीवाइं वजाए ॥ ३६॥ जाई चत्तारि जुझाइ, इसिणा हारमाणि ॥ ताई तु विवऊतो, संजमं अणुपालए ॥॥ पिंडं सिजं च वत्यं च, चनत्यं पायमेव य ॥ अकप्पिरं न इलिजा, पमिगाहिज कप्पियं ॥ ४ ॥ जे निआगं ममायंति, कीअमुद्देसिाहडं ॥ वहं ते समणुजाणंति, अ उत्तं महेसिणा ॥ ए॥ तम्हा असणपाणाई, कीअमुदै सिाहमं ॥ वजयंति गिअप्पाणो, निग्गंथा धम्मजीविणो ॥ ५० ॥ कंसेसु कंसपाएसु, कुंडमोएसु वा पुणो ॥ तुंजतो असणपाणाई, आयारा परित्नस्सइ ॥५१॥ सीदगसमारंने, मत्तधोअणणचडणे ॥ जाइं बंनंति नूआई, दिो तत्थ असंजमो ॥ ५५ ॥ पत्थाकम्मं करेकम्म, सिया तत्थ न कप्प३ ॥ एअमन नुंजंति, निग्गंथा गिहिलायणे ॥ २३ ॥ आसंदीपलिकेसु, मंचमासालएसु वा ॥ अणायरिअमजाणं, आसंत्तु सश्त्तु वा ॥ ५४॥ नासंदीपलिकेसु, न निसिजा न पीढए ॥ निग्गंथा पडिलेहाए, बुधवुत्तमहिगा ॥ ५५॥ गंलीरविजया एए, पाणा पुप्पडिलेहगा ॥ आसंदी पलिअंको अ, एअम विवजिआ ॥५६॥ गोअरग्ग पविस्स, निसिजा जस्स कप्पश् ॥ श्मे रिसमणायारं, आववजा अबोहि ॥ २७॥ विवत्ती बनचेस्स, पाणणं च वहे वहो ॥ वणीमगपमिग्घाट, पमिकोहो अगारिणं ॥ ५ ॥
अगुत्ती बंजचेरस्स, इत्थी वा वि संकणं ॥ कुसीलवढणं गणं, दूर परिवजाए ॥ एए॥ तिन्हमन्नयरागस्स, निसिङजा जस्स कप्पश् ॥ जराए अनिअस्स, वाहिअस्स तवस्सिणो ॥ ६ ॥ वाहिउँ वा अरोगी वा, सिणाणं जो पत्थए ॥ वुकंतो होश आयारो, जढो हव संजमो ॥ ६१ ॥ संति मे सुहुमा पाणा, घसासु निलगासु अ॥ जे अ निरकू सिणायंतो, विअडेणुप्पिलावए ॥ ६॥ तम्हा ते न सिणायंति, सीएण उसिणेण वा ॥ जावजीवं वयं घोरं, असिणाणमहिगा ॥ ३ ॥ सिणाणं अवा ककं, लुई पजमगाणि अ॥ गायस्सुबट्टणाए, नायरंति कया इ वि ॥ ६ ॥ नगिणस्स वा वि मुंमस्स, दीहरोमनहसिणो ॥ मेहुणा उवसंतस्स, किं विनूसाइ कारिअं॥ ६५ ॥ विनूसावत्तिअं निरकू, कम्मं बंधश् चिक्कणं ॥ संसारसायरे घोरे, जेणं पड पुरुत्तरे ॥६६॥ विनुसावत्तिरं चेअं, बुझा मन्नति तारिसं ॥ सावऊं बहुलं चेअं, नेयं ताहिं सेविअं ॥ ६७ ॥
खवंति अप्पाणममोहदंसिणो, तवे रया संजमअजावे गुणे ॥ धुणंति पावाइं पुरेकडाई, नवाई पावाई न ते करंति ॥ ६ ॥ . अवसंता अममाअकिंचणा, सविजविजाणुगया जसंसिणो ॥ उउप्पसन्नेविमलेवचं दिमा, सिर्किविमाणाजवंति ताणो ॥त्तिवेमि ॥ ६ए॥
॥ति महाचारकथाख्यं पष्ठमजयनाएं सम्मत्तं ॥६॥
॥ अथमुवाक्यशुद्ध्याख्यं सप्तममध्ययनम् ॥ ७ ॥ चउन्हं खलु नासाणं, परिसंखाय पन्नवं ॥ उन्हं तु विणयं सिरके, दो न नासिङ सबसो ॥१॥ जा श्र सच्चा अवत्तबा, सच्चामोसा अजा मुसा ॥ जा अ वुझेहिं नाइन्ना, न तं नासिक पन्नवं ॥२॥

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