Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Samaysundar, Haribhadrasuri,
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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७१४ राय धनपतसिंघ बहारका जैनागमसंग्रह नाग तेतालीस-(४३)-मा. तणरुरकं न बिंदिजा, फलं मूलं च कस्स ई ॥ आमगं विविहं वीरं, मणसा विण पत्रए ॥ १० ॥ गहणेसु न चिज्जिा , बीएसु हरिएसु वा ॥ उदगंमि तहा निच्चं, उत्तिंगपणगेसु वा ॥ ११॥ तसे पाणे न हिंसिजा, वाया अव कम्मुणा ॥ जवर सबनूएसु, पासेज विविहं जगं ॥ १२॥ अ सुहुमाइ पेहाए, जाइं जाणिन्तु संजए ॥ दयाहिगारी नूएसु, आस चिफ सएहि वा ॥ १३ ॥ कयराइं अ० सुहुमाई, जाई पुनिज संजए ॥ इमाई ताई मेहावी, आइखिज विअरकणो ॥ १४ ॥ सिणेहं पुप्फसुहुमं च, पाणुत्तिंगं तहेव य ॥ पणगं वीअहरिअंच, अंडसुदुमं च अमं ॥ १५॥ एवमे आणि जाणित्ता, सबलावेण संजए ॥ अप्पमत्तो जए निच्चं, सबिंदिअसमाहिए ॥ १६॥ धुवं च पडिलेहिजा, जोगसापायकंबलं ॥ सिऊमुच्चारनूमिं च, संथारं अञ्वासणं ॥ १७॥ . . उच्चारं पासवणं, खेलं सिंघाणजहि ॥ फासुझं पडिलेहित्ता, परिगविज संजए ॥ १७ ॥ पविसित्तु परागारं, पाणघा नोअणस्स वा ॥ जयं चिठे मियां नासे, न य रूवेसु मणं करे ॥ १७॥ बहुं सुणेहि कन्नेहिं, बहुँ अबीहिं पिच ॥ नय दिई सुझं सबं, जिरकू डारकाउमरिहई ॥ २० ॥ सुकं वा जश् वा दिलं, न लविजोवघाश्यं ॥ न य केण उवाएणं, गिहिजोगं समायरे ॥ २१॥ .. निजाणं रसनिझुढं, नदगं पावगं ति वा ॥ पुणे वा वि अपुणे वा, लाजालानं न निदिसे ॥ २॥
न य नोअणंमि गियो, चरे उंचं अयंपिरो ॥ अफासुझं न तुंजिजा, कीअमुद्देसिआहडं ॥ २३ ॥ सं निहिं च न कुबिजा, अणुमायं पि संजए ॥ मुहाजीवी असंवधे, हविक जगनिस्सिए ॥२४॥ लूहवित्ती सुसंतु, अप्पिचे सुहरे सिआ ॥ आसुरत्तं न गनिजा, सुच्चा णं जिणसासणं ॥ २५॥ कन्नसुरकेदि सद्देहिं, पेम नाजिनिवेसए ॥ दारुणं कक्कसं फासं, कारण अहिवासए ॥ २६॥ खुहं पिवासं पुस्सिङ, सीनन्हं अरइं जयं ॥अहिआसे अवहिन, देहरकं महाफलं ॥ २५ ॥ अत्यं गयंमि आश्च्चे, पुरत्या अ अणुगए ॥ आहारमाश्यं सवं, मणसा विणा पञ्चए ॥ २० ॥ अतिंतिणे अचवले, अप्पनासी मिश्रासणे ॥ हविजा उअरे दंते, श्रोवं लडुं न खिंसए ॥ ए॥ न बाहिरं परिनवे, अत्ताणं न समुक्कसे ॥ सुअलाजे न मजिजा, जच्चा तवस्सिबुधिए ॥ ३० ॥ से जाणमजाणं वा, कट्ट आहम्मियं पयं ॥ संवरे खिप्पमप्पाणं, बीअं तं न समायरे ॥३१॥ अणायारं परकम्म, नेव गूहे न निन्हवे ॥ सुई सया वियडजावे, असंसत्ते जिदिए ॥ ३॥ अमोहं वयणं कुजा, आयरिस्स महप्पणो ॥ तं परिगिन वायाए, कम्मुणा उववायए ॥ ३३ ॥ अधुवं जीवियं नच्चा, सिधिमग्गं वित्राणिश्रा ॥ विणिअहिज लोगेसु, आलं परिमिअप्पणो ॥ ३५ ॥ बलं थामं च पेहाए, सहामारुग्गमप्पणो ॥ खित्तं कालं च विनाय, तहप्पाणं निजुंजए ॥ ३५॥ जरा जाव न पीडेई, वाही जाव न वढई॥ जाविंदिया न हायंति, ताव धम्मं समायरे ॥३६॥ कोहं माणं च मायं च, लोनं च पाववढणं ॥ वमे चत्तारि दोसे ज, इच्छतो हिअमप्पणो ॥३७॥ कोहो पीई पणासेई, माणो विषयनासणो ॥ माया मित्ताणि नासेई, लोनो सबविणासणो ॥ ३ ॥ उवसमेण हणे कोहं, माणं मदवया जिणे ॥ मायामजवनावेन, लोनं संतोस जिणे ॥३ए॥
कोहो अ माणो अ अणिग्गहीआ, माया अ लोनो अ पवढमाणा॥ चत्तारि एए कसिणा कसाया, सिंचंति मूलाइ पुणप्नवस्स ॥४॥ रायणि एसु विणयं पलंजे, धुवसीलयं सययं न हावश्जा ॥
कुम्मुव अहीणपलीणगुत्तो, परकमिजा तवसंजमंमि ॥४१॥ . निदं च न वह मन्निका, सप्पहासं विवाए ॥ मिहो कहाहिं न रमे, सप्लायमि र सया ॥२॥ जोगं च समणधम्ममि, मुंजे अनलसोधुवं । जुत्तो असमणधम्ममि, अळं लहइ अणुत्तरं ॥४३॥

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