Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Samaysundar, Haribhadrasuri, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 747
________________ प्रश्श् राय धनपतसिंघ बहाउरका जैनागमसंग्रह नाग तेतालीस-(४३)-मा. संबन्चरं वा वि परं पमाणं, बीअं च वासं न तहिं वसिजा ॥ सुत्तस्स मग्गेण चरिङ निरकू, सुत्तस्स अत्यो जह आणवे ॥११॥ जो पुवरत्तावररत्तकाले, संपिरका अप्पगमप्पगेणं ॥ किं मे कडं किच्चमकिच्चसेस, किं सक्कणि न समायरामि ॥ १२ ॥ किं भे परो पास किंच अप्पा, किं वाहं खलिअं न विवजयामि ॥ इच्चेव सम्मं अणुपासमाणो, अणागयं नो पडिबंध कुजा ॥ १३ ॥ जत्येव पासे कर उप्पलत्तं, काएण वाया अ5 माणसेणं ॥ तत्थेव धीरो पमिसाहरिजा, आइन्न खिप्पमिव खलीणं ॥ १४ ॥ जस्से रिसा जोग जिइदिअस्स, धिश्म सप्पुरिसस्स निचं ॥ . तमाहु लोए पमिबुद्धजीवी, सो जीअ संजमजीविएणं ॥ १५ ॥ अप्पा खलु सर पर ररिकअबो, सविंदिएहिं सुसमाहिएहिं ॥ अररिक जाइपहं मवेश, सुररिकर्ड सबउहाण मुच्च॥ त्तिबेमि ॥ १६॥ ॥ इति विवित्तचरिआ बीआ चूला सम्मत्ता ॥२॥ ॥ दसवेआलियं मूलसुत्तं संमत्तं ॥ हीनपुण्या न पश्यंति, रागांधास्तत्वसंस्थितिम् ॥ लाजेऽलानफलं चैव, वनंते ते नराधमाः ॥ १॥ LOSARE 8066666000 9000000000000000000000000000000000 ॥समाप्तं चेदं श्री दशवैकालिकं सूत्रं टीका अवचूरि दीपिका नापा मूलसहितं गुरुश्रीमच्चारित्रविजयसुप्रसादात् ॥ ॥श्रीरस्तु ॥

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