Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Samaysundar, Haribhadrasuri, 
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek

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Page 736
________________ ७१२ राय धनपतसिंघ बहारका जैनागमसंग्रद् जाग तेतालीस (४३) - मा. ८ ॥ ए ॥ १० ॥ ॥ असच्चमोसं सच्चं च, प्रणवऊमकक्कसं ॥ समुप्पेहमसंदिहं, गिरं नासि पन्नवं ॥ ३ ॥ एं च मन्नं वा, जं तु नामे सासयं ॥ स जासं सच्चमोसं च तं पि धीरो विवजए ॥ ४ ॥ विहं पि तहामुत्तिं, जं गिरं जासए नरो ॥ तम्हा सो पुो पावेणं, किं पुर्ण जो मुसं वए ॥ ५ ॥ तम्हा लामो वरकामो, मुंगं वा ऐ नविस्स ॥ श्रहं वाणं करिस्सामि, एसो वाणं करिस्स ॥ ६ ॥ एवमाइ उ जा जासा, एसकालंमि संकिया | संपयामहे वा, तंपि धीरो विवकए ॥ ७ ॥ कामि, पच्चुपलमा गए । जमहं तु न जाणिका, एवमेत्र् ति नो वए ॥ कामि, पचप्पलमणागए ॥ जत्थ संका जवे तं तु, एवमेत्र् ति नो वए ॥ मि कामि, पचुप्पमागए || निस्सं कि जवे जं तु, एवमेयं तु निद्दिसे ॥ तहेव फरुसा जासा, गुरुमूर्जवधाणी || सच्चा वि सा न वत्तवा, जर्ज पावस्स गमो ॥ तव का काण त्ति, पंडगं पंडग तिवा ॥ वाहियां वा वि रोगित्ति, तेणं चोरत्ति नो वए ॥ १२ ॥ एएन्ने, परो जेणुवहम्मद || यारनावदोसन्नू, न तं जासि पन्नवं ॥ १३ ॥ तव होले गोलित्ति, साखे वा वसुलित्ति कुम्मए 5हए वा वि, नेवं नासिक पन्नवं ॥ किए पएि वा वि, अम्मो मानसित्ति ॥ पिसिए जायणित्ति, धूए एचित्ति हले हलित्ति अन्नि त्ति, जट्टे सामिष गोमिया ॥ होले गोले वसुलित्ति, इचित्रां नेवमालवे ॥ १६ ॥ नामधि, बीगुत्तेण वा पुणो ॥ जहा रिहमनिगिनं, आलविका लवि वा ॥ १७ ॥ अपए वा वि, बप्पो चुम्लपित्त ॥ माडला जाइणिक त्ति, पुत्ते तु ति ॥ १८ ॥ हलित्तिन्नित्ति, नट्टे सामि गोमि । होल गोल वसुलि त्ति, पुरिसं नेव मालवे ॥ १५ ॥ नामधिऊण जं वूआ, पुरिसगुत्तेण वा पुणो ॥ जहारिहमनिगिन, आल विज लवि वा ॥ २० ॥ पंचिंदिया पाणा, एस इत्थी यं पुमं ॥ जाव णं न विजाणिजा, ताव जाइ तिलवे ॥ २१ ॥ तहेव माणसुं पसुं, परिकं वा वि सरीसवं ॥ थूले पमेश्ले वने, पायमित्ति नो व ॥ २२ ॥ परिवृढत्ति वू, वू उवचित्र त्ति ॥ संजाए पीलिए वा वि, महाकाय तिलवे ॥ २३ ॥ तब गाउँ फुला, दम्मा गोरहगति ॥ वाहिमा रहजो गित्ति, नेवं नासिक पन्नवं ॥ २४ ॥ जीवं गवित्ति बू, धेणुं रसदयत्ति रहस्से महलए वा वि, वए संवह वित्तिय ॥ २५ ॥ तव तुमुाणं, पद्ययाणि वाणि रुरका महल पेहाए, नेवं नासिक पन्नवं ॥ २६ ॥ पासाय खंजाणं, तोरणाणि गिहाणि ॥ फलिहग्गलनावाएं, छालं उदगदोणिं ॥ २७ ॥ पीढए चंगबेरे, नंगले मध्यं सिया || जंतली व नाजी वा, गंमिश्रा व कालं सिया ॥ २८ ॥ घ्आसणं सवणं जाणं, ढुङ्गा वा किंचुवस्सए ॥ भूवघाइणिं जासं, नेवं जासिक पन्नवं ॥ २९ ॥ तदेव गंतुमुजाणं, पद्ययाणि वाणि ॥ रुरका महल पेहाए, एवं जासिक पन्नवं ॥ ३० ॥ जाता में रुका, दीवट्टा महालया ॥ पयायसाला वरिसा, वए दरिणित्ति ॥ ३१ ॥ तदा फलाई पक्काई, पायखका नो बए || बेलोड्याई टालाई, वेहिमाड़ त्ति नो वए ॥ ३२ ॥ इमे त्र्यंबा, बहुनिघडिमा फला ॥ वा बहु संया, नूरूवत्ति वा पुणो ॥ ३३ ॥ बसदि पकार्ट, नीलिया तवी || लाइमा नकिमान त्ति, पिडुखऊ त्ति नो वए ॥ ३४ ॥ साया घिरा उसढा वि ॥ गनिया पसू, संसाराजत्ति आवे || ३५ ॥ नवसं िनचा, कि कांति नो वए ॥ प्रेागं वाचि वलित्ति, सुतिचित्ति यावगा ॥ ३६ ॥ संपत्ति तेगं || बहुसमा णि तित्याणि, त्र्यावगाणं वियागरे ॥ ३७ ॥ नाना कायनिज्ञात्ति नो ए ॥ नात्राहिं तारिमानत्ति, पाणिपिऊ त्ति नो वए ॥ ३८ ॥ ॥ ॥ ११ ॥ १४ ॥ ॥ १५॥

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