Book Title: Agam 42 Mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Samaysundar, Haribhadrasuri,
Publisher: Shravak Bhimsinh Manek
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___अथ दशवकालिकसूत्रपाठः । सोच्चा जाणइ कहाणं, सोच्चा जाण पावगं ॥ उन्नयं पि जाण सोच्चा, जं सेअं तं समायरे ॥११॥ जो जीवे वि न आणेश, अजीवे वि न आण ॥ जीवाजीवे अयाणंतो, कह सो नाई सेजमं ॥ १ ॥ जो जीवे वि वि आणेहि, अजीवे वि वि आणइ ॥ जीवाजीवे वित्राएंतो, सो हु नाहीइ सयमं ॥१३॥ जया जीवमजीऐ अ, दो वि एणं विण ॥ तया गई बहुविहं, सबजीआण जाण ॥१४॥ जया गई बहुविहं, सबजीआण जाण ॥ तया पुणं च पावं च, बंधं मुरकं च जाण ॥ १५॥ . . जया पुणं च, पावं च बंधं मोरकं च जाण ॥ तया निबिंदए नोए, जे दिवे जे अ माणुसे ॥ १६॥ . जया निबिंदए नोए, जे दिवे जे अ माणुसे ॥ तया चयश् संजोगं, सप्रिंतरवाहिरं ॥ १७ ॥ जया चयश् संजोगं, सप्निंतर बाहिरं ॥ तया मुंडे नवित्ता णं, पवश्ए अणगारिशं ॥१७॥ जया मुंझे नवित्ता णं, पवश्ए अणगारिश्र ॥ तया संवरमुक्किलं, धम्मं फासे अणुत्तरं ॥ १५ ॥ जया संवरमुकिवं, धम्मं फासे अणुत्तरं ॥ तया धुण कम्मरयं, अबोहिकलुसं कडं ॥ २० ॥ जया धुण कम्मरयं, अबोहिकलुसं कडं ॥ तया सबत्तगं नाणं, दंसणं.चालिगव॥२१॥ जया सबत्तगं नाणं, दसणं चालिग ॥ तया लोगमलोगं च, जिणो जाण केवली ॥ २२॥ . जया लोगमलोगं च, जिणो जाणइ केवली ॥ तया जोगे निलंन्नित्ता, सेलसिं पमिवजाइ ॥ २३॥ . जया जोगे निलंनित्ता, सेलोसि पडिवज ॥ तया क़म्म खवित्ता णं, सिधिं गवद नीरजे ॥ २४ ॥ जया कम्मं खवित्ता णं, सिद्धिं गब नीर ॥ तया लोगम मचयनो, सियो हवइ सास ॥२५॥
सुहसावगस्स समणस्स, साया लग्गस्स निगामसाइस ॥
. उबोलणापहोअस्स, उबहा सुगइ तारिसगस्स ॥ २६॥ तवोगुणपहाणस्स, उमर खंतिसंजमरयस्स ॥ परीसहे जिणंतस्स, सुलहा सुगइ तारिसगस्स ॥ २७ ।। पहा वि ते पयाया, खिप्पं गचंति अमरजवणाशाजेसि पिउँ तवो सं-जमो अखंती अवंजचेरं च ॥२॥ इच्चेअं उजीवणि, सम्मदिठी सया जए॥उबहं लहित्तु सामन्नं, कम्मुणा न विराहिलासि॥त्तिबेमि॥२॥
चननं जीवणि आ णामनयणं संमत्तं ॥४॥
अथ पिण्डेषणाध्ययनम् ॥५॥ संपत्ते निरककालंमि, असंनंतो अमुचित ॥ इमेण कम्मजोगेण, लत्तपाणं गवेसए ॥१॥ से गामे वा, नगरे वा गोअरग्गगर्ड मुणी ॥ चरे मंदमणुविग्गो, अबस्कित्तेण चेअसा ॥२॥ पुर जुगमायाए, पेहमाणो महिं चरे ॥ वजंतो बीअहरिआइ, पाणे अ दगमट्टिकं ॥३॥ उवायं विसमं खाएं, विजलं परिवजए ॥ संकमण न गमिजा, विऊमाणे परक्कमे ॥४॥ पवझते व से तब, परकलंते व संजए ॥ हिंसेज पाणनूआइ, तसे अवथावरे ॥५॥ तम्हा तेण न गळिजा, संजए सुसमाहिए ॥ सइ अन्नेण मग्गेण, जयमेव परक्कमे ॥६॥ इंगालं गरि रासिं, तुसरासिं च गोमयं ॥ ससररकेहिं, पाएहिं संजः तं नक्कमे ॥ ७॥ . न चरेज वासे वासंते, महिआए पतिए ॥ महावाए व वायंते, तिरिसंपाश्मेसु वा ॥ ७ ॥ न चरेज वेससामंते, बंजचेरवसाणुए ॥ वलयारिस्स दंतस्स, हुजा तवविसुत्तिया ॥ ए॥ . अणायणे चरंतस्स, संसग्गीए अनिरकणं ॥ दुङ क्याणं पीला, सामन्नंमि अ संस॥१०॥ तह्मा एवं विश्राणित्ता, दोसं उग्गवडणं ॥ वहाए वेससामंतं, मुणी एगंतमस्सिए ॥ ११॥ .. साणं सूश्वे गावि, दित्तं गोणं हयं गयं ॥ संडिप्नं कलहं जुळ, उर परिवजए ॥ १२॥ ... अणुन्नए नावणए, अप्पहिछे अणाजले ॥ इंदिआणि जहानागं, दमत्ता मुणी चरे ॥ १३॥ . . . दवदवस्स न गछेडा, नासमाणो अ गोअरे ॥ हसंतो नानिगडिजा, कुलं उच्चावयं सया ॥ १४ ॥
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