Book Title: Agam 34 Chhed 01 Nishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassa garsuri Gyanmandir १४३ । जे० पायं एगेणं बंधेणं बंधइ बंधतं वा सा० '७३१' । ४४। जे० पायं परं तिण्हं बंधाणं बंधइ बंधतं वा सा० '७३६' | । ४५ । जे० अइरेगबंधणं पायं दिवड्ढाओ मासाओ परेण धरे तं वा सा० '७४५' । ४६ जे० वत्थस्स एगं पडियाणियं देइ देंतं वा सा० '७६२' । ४७ जे० वत्थस्सं परं तिण्हं पडियाणियाणं देइ देंतं वा सा० ७६७' । ४८ जे० अविहीए सिव्वइ सिव्वंतं वा सा० '७७४' । ४९। जे० वत्थे एगं फालियगण्ठियं करेइ करतं वा सा० "७७७' । ५० जे० वत्थे परं तिण्हं फालियगण्ठियाणं करेइ करतं वा सा० ।५१ । जे० वत्थे एगं फालियं गण्ठेइ गंठतं वा सा० । ५२ । जे० वत्थे परं तिण्हं फालियाणं गंठेइ गंठतं वा सा० ।५३) जे० वत्थं अविहीए गंठेइ गंठं वा सा० '७७८' । ५४ जे० वत्थं अतजाएणं गाहेइ गाहंतं वा सा० '७८१' १५५ जे० अरेगगहियं वत्थं परं दिवड्ढाओ मासाओ धरेइ तं वा सा० '७८७' 1५६ जे० गिहधूमं अन्नउस्थिएण वा गारथिएण वा परिसाडावेइ परिसाडेंतं वा सा० '७९३' १५७ जे० पूइकम्म भुंजइ भुंजतं वा साइजइ, तं सेवमाणे आवजइ मासियं परिहारहाणं अणुग्घाइयं '८०४' ६४ । ५८॥ पढमो उद्देसओ समत्तो ॥ ... जे भिक्खू दारुदंडगं पायपुंछणगं करेइ करतं वा सा० '१८' ।१ ० गिण्हइ गिण्हतं वा सा०१२० घरेइ धरंत वा सा० । ३० वियरइ वियरेत वा सा० । ४० परिभाएइ परिभायंतं वा सा०५० परिभुञ्जइ परिभुंजतं वा सा० '२१'१६ । जे० परं दिवड्ढाओ मासाओ धरेइ धतं वा सा० २८' । ७ जे० विसुयावेइ विसुयावेतं वा सा० '३६' 1८जे भिक्खू ॥ श्री निशीथसूत्र ॥ पू. सागरजी म. संशोधित | For Private And Personal Use Only

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