Book Title: Agam 34 Chhed 01 Nishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अच्चासाएइ अच्चासायंतं वा सा०५२४जे भिक्खूअणन्तकायसंजुत्तं आहारं आहारेइ आहारेत वा सा०५६५० आहाकम्म भुञ्जइ भुझंतं वा सा० '८१६० पडुप्पन्नं वागरेइ वागरेंतं वा सा०७० अणागयं निमित्तं वागरेइ वागरंतं वा सा०९३८० | सेहं विष्परिणामेइ विपरिणामंतं वा सा०९० अवहरइ अवहरंतं वा सा०१०० दिसं विपरिणामेइ विष्परिणामंतं वा सा०११० अवहरइ अवहरंतं वा सा० १५७११२१० बहियावासियं आएसं परं तिरायाओ अविफालेत्ता संवसावेइ संवसावेंतं वा सा०१३० साहिगरणं अविओसवियपाहुडं अकडपायच्छित्तं संभुञ्जइ संभुंजंतं वा सा० -२५३११४० उग्धाइयं अणुग्घाइयं वयइ वयंत वा सा०।१५० अणुग्धाइयं उग्याइयं०१६० उग्घाइए अणुग्याइयं देइ देंतं वा सा०१७० अणुग्धाइए उग्धाइयं०१८ जे भिक्खू उग्धाइयं सोच्चा नच्चा संभुअइ संभुंजंतं वा सा०११९० उग्धाइयहेउ०१२०० उग्घाइयसंकल्पं०२१) उग्धाइयं वा उग्धाइयहे वा उग्धाइयसंकष्पं वा० १२२० अणुग्धाइयं० अणुग्घाइयहे. अणुग्धाइयसंकल्प० अणुग्धाइयं वा अणुग्धाइयहेउवा | अणुग्धाइयसंकप्पं वा० १२३-२६० उग्धाइयं वा अणुग्धाइयं वा० १२७० उग्धाइयहे वा अणुग्घाइयहे वा० १२८० उग्धाइयसंकल्प वा अणुग्धाइयसंकल्पवा० १२९० उग्धाइयं वा अणुग्धाइयं वा उग्धाइयहे वा अणुग्धाइयहेउवा उग्धाइयसंकप्पं वा अणुग्धाइयसंकप्पं वा० १३० जे भिक्खू उग्गयवित्तीए अणथमियमणसंकप्पे संथडिए निविइगिच्छासमावन्नेणं अप्पाणेणं असणं वा० पडिगाहेत्ता संभुअइ संभुञ्जन्तं वा सा०३१० संथ० विइगिच्छा०३२० असंथडिए निविइगिच्छा०॥३३० असं० || श्री निशीथसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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