Book Title: Agam 34 Chhed 01 Nishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 42
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुब्भिगंधेणवि दो चेव गमा॥ जे दुब्भिगंधे पडिग्गहगे लद्धेत्ति० दुब्भिगंधेण दो चेव गमा णेयव्वा १७४।२४-२९१ जे भिक्खू अणन्तरहियाए पुढवीए जाव जीवपतिहिते सअंडे जाव ससंकमणसि चलाचले सपडिग्गहगं आयावेज वा पयावेज वा आया० पयावंतं वा सा०३०-४० एवं जे० कुलियंसि वा जाव लेलुयंसि वा सपडिग्गहगं आया० पया० साइ०४१। जे० खंसि जाव पासायंसि वा अन्नयरंसि वा अंतरिक्खजायंसि सपडि० १७९ १४२० पडिग्गहाओ पुढवीकायं आउकायं तेउकायं नीहरइ नीहरावेइ नीहरियं आहटु देजमाणं पडिग्गाहेइ पडिग्गाहंत वा सा०॥४३० कंदाणि वा मूलाणि वा पत्ताणि वा पुष्पाणि वा फलाणि वा बीयाणि वा०४४ ओसहिबीयाई०।४५० तसपाणजायं० १९५'४६ जे भिक्खू पडिग्गहगं णिक्कोरेइ णिकोरावेइ णिक्कोरियं आहटु देज्जमाणं पडिग्गाहेइ पडिगाहंतं वा सा० २००१४७जे भिक्खू नायगंवा अनायगंवा उवासगंवा अणुवासगं वा गामन्तरंसि वा गामपहन्तरंसि वा पडिग्गहगं ओभासिय २३ जायइ जायंतं वा सा०४८० अणुवासगंवा परिसामझाओ उहवेत्ता० २१३ ४९ जे भिक्खू पडिग्गहगनीसाए उडुबद्ध वसइ वसंतं वा सा० ५०० वासावासं० २१७' तं सेवमाणे आवजइ चाउम्मासियं परिहारहाणं उग्धाइयं५१॥ चउद्दसमो उद्देसओ १४॥ जे भिक्खू भिक्खूणं आगाढं वयइ क्यंत वा सा०१॥ एवं फरुसं०१२। आगाढफरुसं०३० अन्नयरीए अच्चासायणाए अच्चासाएइ २४ाजे भिक्खू सचित्तं अम्बं भुञ्जइ भुंजंतं वा सा०५ विडसइ विडसंतं वा सा०६ सचित्तं अम्बं वा अम्बपेसिं || श्री निशीथसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55