Book Title: Agam 34 Chhed 01 Nishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

View full book text
Previous | Next

Page 48
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ओ० सा०६० जलाओ नावं थले उकसावेइ उ२० सा०७० पुण्णं नावं उस्सिञ्चइ ३० सा० ८ सन्नं नावं उप्पिलावेइ उप्पि० सा०९० पडिणावियं कटु नावाए दुरुहइ दु० सा०१००उड्ढगामिणिं वा नावं अहोगामिणिं वा नावं दुरुहइ दु० सा०११० जोयणवेलागामिणिं वा अद्धजोयणवेलागा० वा नावं दु० दु० सा०१२० नावं आकसावेइ ओकसावेइ खेवावेइ रज्जुणा वा कड्ढइ०१३० नावं आलित्तएण वा पण्फिडएण वा वंसेण वा वलेण वा वाहेइ वा० सा०।१४। नावाओ उदगं भायणेण वा पडिग्गहेण वा मत्तेण वा नावाउस्सिञ्चणेण वा उस्सिञ्चइ ३० सा०।१५० नावं उत्तिंगेण उदगं आसवमाणिं उवरूवरि कजलमाणिं पेहाय हत्थेण वा पाए वा आसत्थपत्तेण वा कुसपत्तेण वा मट्टियाए वा चेलकण्णेण वा पडिपीहेइ ५० सा० ।१६३० नावागओ तावागयस्स असणं वा० पडिगाहेइ ५० सा० ३०' एतेण गमेण णावागओ जलगतस्स णावागतो पंकायस्स णावागतो थलगतस्स, एवं जलगएणवि चत्तारि पंकगएणवि चत्तारि थलगएणवि चत्तारि गमा णेयव्वा १७-३२० वत्थं किणइ किणावेइ कीयमाहटु दिज्जमाणं पडिग्गाहइ २० सा०, एवं चोद्दसमे उद्देसे पडिग्गहए जो गमो भणिओ सो चेव इहंपि वत्थेण णेयव्वो जाव वासावासं संवसइ संव० सा० नवरं णिक्कोरणं नत्यि '३१' तं सेवमाणे आवजइ चाउम्मासियं परिहारहाणं उग्घाइयो३३-८८॥ अट्ठादसमो उद्देसओ १८॥ जे भिक्खू वियडं किणइ किणावेइ कीयं आहटु देजमाणं पडिग्गाहेइ ५० स०११। एवं पामिच्चेति पामिच्चावेति ॥ श्री निशीथसूत्रं ॥ | ३७ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55