Book Title: Agam 34 Chhed 01 Nishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ठाणं वा सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ चेयंत वा सा०२० सचित्तरुक्खमूलसि ठिच्चा असणं वा० आहारेइ आहारतं वा सा०३०. उच्चारपासवर्ण परिवेइ परिवंतं वा सा० २९।४।० सज्झायं करेइ करेंतं वा सा०५० उद्दिसइ उहिस्संतं वा सा०६० समुद्दिसइ समुद्दिसंतं वा सा०७० अणुजाणइ अणुजाणंतं वा सा०1८० वाएइ वायंतं वा सा०९० पडिच्छइ पडिच्छंत् वा सा०१०० परियट्टेइ परियद॒तं वा सा० ३६११११ जे भिक्खू अपणो संघाडि अनउत्थिएण वा गारथिएण वा सिव्वावेइ सिव्वावंतं वा सा० ४५'१२३० अप्पणो संघाडीए दीहसुत्ताई करेइ क्रतं वा सा० ५० १३० पिउमंदपलासयं वा पडोल५० वा बिल्ल५० वा सीओदगविथडेण वा उसिणोदगवियडेण वा संफाणिय संफाणिय आहारेइ आहारतं वा सा० ५९।१४० पडिहारियं | पायपुञ्छणयं जाइत्ता तामेव रयणिए पच्चप्पिणिइस्साभित्ति सुए पच्चप्पिणइ पच्चप्पिणंतं वा सा०।१५० पडिहारियं पायपुञ्छणयं जाइत्ता सुए पच्चप्पिणइस्सामित्ति तमेव रयणिं पच्चप्पिणइ पच्चप्पिणंतं वा सा०१६। एवं सागारियसंतिएवि जे पायपुच्छणयं जाइत्ता दो आलावग्गा १७-१८९० पाडिहारियंदण्डयं वा लट्ठियं वा अवलेहणिज्जंवा वेलुसूइंवा एवं एतेहिं दोहिं चेव पाडिहारियं सागारियं गमएहिं णेयव्वा १९-२२१० पाडिहारियं सेज्जासंथारगं पच्चप्पिणित्ता दोच्चंपि अणणुनविय अहिटेइ अहिटुंतं वा सा०८११२३ एवं सागारियसंतिएवि।२४ जे० पाडिहारियं वा सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारयं अप्पच्छप्पिणित्ता अणुण्णविय अहिद्वे३ अहिटुंतं वा सा० २५० सणकप्पासाओ वा पोण्डक० वा उण्णक० वा अमिलक० वा दीहसुत्ताई करेइ तं वा ||॥ श्री निशीथसूत्रं ॥] पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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