Book Title: Agam 34 Chhed 01 Nishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सा० ११२१२६० सचित्ताई करेइ घरेइ परिभुंजइ करत० वा सा०२७-२९। एवं चित्ताई ३०-३२॥ विचित्ताणि दारुदण्डाणि वा वेलुदण्डाणि वा वेत्तदं० वा करेइ करतं वा सा० ११२२६० सचित्ताई करेइ धरेइ परिभुंजइ करत० वा सा०२७-२९॥ एवं चित्ताई ३०-३२। विचित्ताणि दारुदण्डाणि वा वेलुदण्डाणि वा वेत्तदं० वा रेइ करतं वा सा० एवं धरेइ धरंतं वा सा० परिभुंजइ परिभुजंतं वा सा० १२०३३-३५। जे० नवगनिवेसंसि गामंसि वा जाव संनिवेसंसि वा अणुपविसित्ता असणं वा० पडिगाहेइ पडिगाहंत वा सा०३६० नवगनिवेसंसि अयागरंसि वा तंबागरंसि वा तआ० वा सीसआ० हिरण्णा० वा सुवण्णआ० वा रयण० वा वइरआ० वा अणुप्पविसित्ता० '१२९३७ जे० मुहवीणियं करेइ करतं वा सा० १३८॥ दन्तवी० । ३९ । एवं | उट्ठवी० ॥ ४०॥ नासावी० ११ कक्खवी० १४२। हत्थवी० ॥ ४३। नहवी० ॥४४पत्तवी० ॥ ४५। पुष्फवी० ॥ ४६॥ फलवी० । ४७ बीयवी० ॥४८॥ हरियवी० ॥४९। मुहवीणियं जाव हरियवी० वाएइ वायंत वा सा० अण्णतराणि वा तहापगाराई अणुदिनाई | सद्दाई उदीरेइ उदीरंतं वा सा० '१३२५०-६१० उद्देसियं सेज अणुपविसइ अणुपविसंतं वा सा०६२० सपाहुडियो६३० सपरिकम्मी६४ जे० 'नथि संभोगवत्तिया किरिय' ति क्यइ वयंतं वा सा० '२७५६५० वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुञ्छणं वा अलं थिरं धुवं धरणिज्ज पलिच्छिदिय पलिच्छिदिय परिद्धवेइ परिष्टुंवंतं वा सा० ६६० लाउयपायं वा दारुपायं वा मट्टियापा० वा०६७/० दण्डगंवा जाव पिप्पलसूइगंवा पलिभज्जिय परिद्धवेइ परिद्धवंतं वा सा०'२८१६८० अइरे गपमाणं ॥ श्री निशीथसूत्रं ॥] पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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