Book Title: Agam 34 Chhed 01 Nishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir || जे० समाणे वा वसमाणे वा गामाणुगाम दूइज्जमाणे पुरेसंथुइयाणि वा पच्छासंथुझ्याणि वा कुलाई पुव्वामेव पच्छ। वा भिक्खायरियाए अणुपविसइ अणुपविसंतं वा सा० '१९११ ३९१ जे भिक्खू अनउथिएण वा गारित्थएण वा परिहारिओ वा अपरिहारिएण सद्धिं गाहावइ कुलं पिंडवायपडियाए अणुपविसइ वा निक्खमइ वा अणुपविसंतं वा निक्खमंतं वा सा० '३०६' । ४० जे० बहिया विहारभूमिं वा वियारभूमि वा निक्खमइ वा पविसइ वा निक्खमंतं वा पविसंतं वा सा० '३१४' । ४१॥ जे० गामाणुगामं दूइज्जइ दूइजतं वा सा० '३२२' । ४२ जे० भिक्खू अन्नयरं भोयणजायं पडिग्गाहेत्ता सुभि सुभि भुञ्जइ० दुभि दुभि परिहवेइं परिवंतं वा सा० १४३। जे० अन्नयरं पाणगजायं पडिग्गाहेत्ता पुष्फगं पुष्पगं आइयइ० कसायं कसायं परिद्ववइ परि० सा० '३३३' । ४४। जे० मणुनं भोयणजायं पडिग्गाहेत्ता बहुपरियावन सिया अदूरे तत्थ साहम्भिया संभोइया समणुना अपरिहारिया संता परिवसन्ति ते अणापुच्छित्ता अनिमंतिय परिदुवइ परिदवंतं वा सा० '३४८' । ४५ जे० सागारियपिंड गिण्हइ गिण्हतं वा सा० ॥ ४६॥ जे० भुंजइ भुजंतं वा सा० ४१५' १४७ जे० सागारियं कुलं अजाणिय अपुच्छिय अग्वेसिय पुवामेव पिंडवायपडियाए अणुपविसइ अणुपविसंतं वा सा० '४२०' १४८ जे० सागारियनिस्साए असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा ओभासिय जायइ जायंतं वा सा० ४२७' । ४९१ जे० उडुबद्धियं वा सेज्जासंथारगं परं पन्जोसवणाओ उवाइणावेइ उवायणावेंतं वा सा० '४५७५० जे० वासावासियं सेज्जासंथारगं परं दसरायकप्याओ० '४९४५१० उडुबद्धियं वा ॥ श्री निशीथसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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