Book Title: Agam 34 Chhed 01 Nishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 17
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वासावासियं वा सेज्जासंथारगं उवरिसिज्जमाणं पेहाए न ओसारेइन ओसारं वा सा० '५००'५२जे० पाडिहारियं सेज्जासंथारगं दोच्चंपि अणुनवेत्ता बाहिं नीणेइ नीणतं वा.सा०५३ जे० सागारियसंतियं ५४ जे० पाडिहारियं वा.सागारियसंतियं वा '५१३' ५५। जे० पाडिहारियं सेज्जासंथारगं आयाए अपडिहटु संपव्वइ संपव्वयंतं वा सा० ५२३५६। जे० सागारियसंतियं सेज्जासंथारगं आयाए अविगरणं कटु अणप्पिणित्ता संपव्वयइ संपव्वयंतं वा सा० ५२७५७) जे० पाडिहारियं वा सागारियसंतियं वा सेज्जासंथारगं विष्पणटुं न गवेसइ णगवसंतं वासा० ६००५८ जे० इत्तिरियपि उवहिं न पडिलेहेइ न पडिलेहंत वा सा०, तं सेवमाणे आवज्जइ मासियं परिहारट्ठाणं उग्धाइयं ६५१ २०५९॥ बिइओ उद्देसओ२॥ जे भिक्खू आगंतागारेसु वा आरामागारेसु वा गाहावइकुलेसु वा परियावसहेसु वा अनउत्थियं वा गारत्थियं वा असणं वा० ओभासह ओभासंतं वा सा०१० अन्नउत्थिया वा गारत्थिया वा०२० अन्नउस्थिणि वा गारस्थिणिं वा०३० अ वा गारस्थिणीओ वा०४१११' जे० अन्नउत्थियं वा गारस्थियं वा कोहलपडियाए पडियागयं समाणं असणं वा० ओभासिय ओभासिय जायइ जायंतं वा सा०, एवं एतेणावि चत्तारि गमगा '२०१५-८ जे० अन्नउथिएण वा गारथिएण वा असणं वा० अभिहडं आहटु दिज्जमाणं पडिसेहेत्ता तमेव अणुवत्तिय २ परिवेढिय २ परिजविय २ ओभासिय २ जायइ जायंतं वा सा०, एवं एतेण चेव चत्तारि गमगा ‘२७'१९-१२। जे० गाहावइकुलं पिण्डवायपडियाए पविढे पडियाइक्खित्ते समाणे दोच्चं तमेव ॥ श्री निशीथसूत्रं ॥] पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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