Book Title: Agam 34 Chhed 01 Nishith Sutra Shwetambar
Author(s): Purnachandrasagar
Publisher: Jainanand Pustakalay

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।१५। पिप्पलगस्स । १६ नहच्छेयणगस्स १७) कण्णसोहणगस्स उत्तरकरणं अन्नउतिथएणं वा गारथिएण वा कारेइ कारंतं वा सा० '६६५' । १८ । जे० अण्णवाए सूई । १९१ पिप्पलगं । २०॥ नहच्छेयणगं । २१॥ कण्णसोहणगं जायइ जायंत्तं वा सा० '६५८' । २२ । जे भिक्खू अविहीए सूई जाव जायइ जायंतं वा सा० ६६०' १२३-२६ जे भिक्खू अप्पणो एगस्स अट्ठाए सूई० जाइत्ता अन्नमन्नस्स अणुप्पदेइ अणुप्पदेंतं वा सा०२७-३०जे भिक्खू पडिहारियं सूई जाइत्ता 'वत्थं सिव्विस्सामि' त्ति पायं सिव्वइ सिव्वंतं वा सा०1३१० पिप्पलगंजाइत्ता 'वत्थं छिंदिस्सामित्ति पायं छिंदइ छिंदतं वा सा०॥३२१० नहच्छेयणगं जाइत्ता 'नहं छिंदिस्सामिति सल्लुद्धरणं करेइ क्रतं वा सा० । ३३० कण्णसोहणगं जाइत्ता कण्णमलं नीहरिस्सामि त्ति दन्तमलं वा नहमलं वा नीहरइ नीहरंतं वा सा० ६६२' । ३४ । जे भिक्खू अविहीए सूई० पच्चप्पिणइ पच्चप्पिणतं वा सा० '६७२' ३५-३०जे भिक्खू लाउपायं वा दारुपायं वा मट्टियापायं वा अन्नउत्थिएण वा गारथिएण वा परिघट्टावेइ वा संठवेइ वा जमावेइ वा अलमप्पणो करणयाए सुठुमवि नो कप्पड़ जायमाणे सरमाणे अन्नभन्नस्स वियरइ वियरतं वा सा० ६८६' । ३९ । जे० दण्डयं वा लट्ठियं वा अवलेहणियं वा वेणुसूइयं वा अनउथिएण वा गारथिएण वा परिघट्टावेइ सो चेव मग्गिलओ गमओ अणुगंतव्यो जाव (पायं तड्डेति) सा० '७०८' । ४० । जे० पायस्स एवं तुडियं तड्डेइ तड्डतं वा सा० '७१४' ।। ४१० पायस्स परं तिण्हं तुडियाणं तड्डेइ तड्डतं वा सा० '७१९।४२जे० पायं अविहीए बंधइ बंधतं वा सा० '७२६' ॥ श्री निशीथसूत्रं ॥ पू. सागरजी म. संशोधित For Private And Personal Use Only

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