Book Title: Agam 33A Maransamahi Painnagsutt 10A Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir माणस्पाहि • (५२) ॥५२॥ ॥५३॥ ॥५४॥ ॥५५॥ ॥५६॥ ||५७|| ॥५८॥ ॥५९॥ ॥६०| (५२) जेपुण तिगारवजढा निस्सल्सा दंसणे चरितेय। विहरंति मुक्कसंगा खति ते सव्वदुक्खाई (१३) सुचिरमवि संकिलिट्ठ विहरतं झाण-संवाबिहीणं । नाणी संवरजुत्तो जिणइअहोरत्तमितेणं जंनि रइ कम्मं असंवुडो सुबहुणा वि कालेणं। तंसंवुडो तिगुत्तो खवेइऊसासमित्तेणं सुबहुस्सुया वि संताजे मूदा सील-संजमगुणेहिं । नकरति भावसुद्धिं ते दुक्खनिमेलणा होति जे पुण सुयसंपन्ना चरित्तदोसेहिं नोयलिपंति। तेसुविसुद्धचरित्ता करति दुक्खक्खयं साहू पुयमकारियजोगो समाहिकामो वि मरणकालम्मि। नभवइपरीसहसहो विसयसुहपराइओजीवो (५८) तंएवं जाणंतो महंतर लाहगं सुविहिएसुं। दंसण-चरित्तसुद्धीइ निम्मलो विहरतं धीर एत्थपुण भावनाओ पंच इमा होति संकिलिट्ठाओ। आराहएण सुविहियजा निखे वणिजाओ (ro) कंदप्प देवकिबिस अपिओगा आसुरी सम्मोहा। एयाओ संकिलिहा असंकिलिहा हवाइ छटा कंदप्प कुक्कुयाइय दवसीलोनिग्रहासणकह उ। विम्हावितोय परं कंदप्पं भावणं कुणइ नाणस्स केवलीणं धम्मायरियस्स संघ-साहूर्ण। माई अवण्णवाई किब्बिसियं भावणं कुणइ मंताभिओगा कोउगमूईकम्मं धजो जणो कुणइ । साय-रस-इड्ढिहेउं अपिओगं भावणं कुणइ अनुबद्धरोस-बुग्गह संसत्त तहा निमित्तपडिसेवी। एएहि कारणेहिं आसुरियं भावणं कुणइ उम्मग्गदेसणा नाणदूसणा मागविपनासो य । मोहेण मोहयंतंसि मावणं जाण सम्मोहं। एयाउ पंच वञ्जिय इणमो छडीइ विहरतं धीर । पंचसमिओ तिगुत्तो निस्संगोसव्वसंगेहिं एयाए मायनाए विहर विसुद्धाइ दीहकालम्मि । काऊण अत्तसुद्धिं दंसण-नाणे धरितेय पंचविहंजे सुद्धिं पंचविहविवेगसंजुयमकाउं। इह उवनमंति मरणं ते उ समाहिं न पायेति पंचविहंजे सुद्धिं पत्ता निखिलेण निच्छियमईया। पंचविहं च विवेग ते हु समाहिं परंपत्ता ॥६१॥ ॥६॥ ॥३॥ ॥६४॥ HIE५|| MEEN ॥६७|| ॥६८॥ IIE९|| For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51