Book Title: Agam 33A Maransamahi Painnagsutt 10A Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 13
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मापसमाहि - (८८) ||८८॥ ॥८॥ ॥९ ॥ ॥९१॥ ॥१२॥ ॥१३॥ ॥२४॥ ॥१५॥ ॥९६| (24) पढमं अद्वारसगं अट्ठय ठाणाणि एव मणियाणि इत्तो दस ठाणाणि यजेसु उवट्ठावणा पणिया (८१) अणवठ्ठतिगंपारंचिगं च तिगमेयठहि गिहीभूया जाणंति जे उएए सुयरयणकरंडगा सूरी सम्मइंसणचत्तं जेय वियाणति आगमविहनू। जाणंति चरित्ताओ य निग्गयं अपरिसंसाओ (९) जो आरंभे वट्टइ चियत्तकियो य अननुतावीय सागोय भवे दसमोजेसु उवट्ठावणा भणिया एएसु विहिदिहण्णू छत्तीसाठाणएसुजे सूरी। तेपवयण-सुयकेऊछत्तीसगुण त्ति नायव्वा तेसि मेरु महोयहि मेयणि-ससि-सूरसरिसकप्याणं । पामूलेय विसोही करणिया सुविहियजणेणं काइय-वाइय-माणसियसेवणं दुप्पओगसंभूयं । जो अइयारो कोई तं आलोए अगूहितो अमुगम्मिइओकाले अमुगत्यऽमुगेण नाम-पावणं। जेजह निसेवियं खतुजेणयसब्वंतहाऽऽलोए मिच्छादसणसम्लं मायासलं नियाणसलं च। तंसंखेवा दुविहं ददे भावे यबोद्धव्यं (९५) तिविहं तु मावसलं दंसण-नाणे चरित्तजोगेय। सञ्चित्ताऽचित्तेविय विमीसए यावि दबम्मि (१८) सुहुमं पि मावसल्लं अनुद्धरित्ता उजो कुणइ कालं लज्जाए गारवेण य नहु सो आराहओ मरणे तिविहं पि भावसालं समुद्धरिता उजो कुइ कालं। पव्वञ्जाई सम्मंस होइआराहओ मरणे (१००) तम्हा सुत्ता-मूलं अविकलविविच्चुयं अनुविग्गो। निम्मोहियमणिगूढं सम्मं आलोयए सव्यं । (१०१) जह बालो जंपंतो कझमकलं च उप्नुयं मणइ। तंतह आलोएज्जा माया-मयविषमुक्को य (१०२) कयपावो विमणूसो आलोइय निदिउं गुरुसगासे। होइ अइरेगलहुओ ओहरियमरोब मारयहो (१०३) लझाए गारवेणयजे नाऽऽलोयंति गुरुसगासम्मि। धंतं पिसुयसमिद्धा न हु ते आराहगा होति (१०४) जह सुकुसलो वि विनोअनस्स कहेइ अत्तणो बाहिं। तंतह आलोयध्वं सुई वि ववहारकुसलेणं (१०५) जंपुज्यं तं पुव्वं जहाणुपुब्बि जहक्कम सव्यं । आलोइज्ज सुविहिओ कम-कालविहिं अमिंदतो ॥२७॥ ॥९८॥ ॥९ ॥ 11900॥ 1190१॥ 1॥१०॥ ||१०३॥ 11१०४॥ ||१०५॥ For Private And Personal Use Only

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