Book Title: Agam 33A Maransamahi Painnagsutt 10A Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४ ॥५५८॥ ||५५९॥ ॥५६॥ ॥५६॥ माणसपाहि - (५५) (५५) जह बीइंति उजीया विविहाण विहीसियाण एगागी। तह संसारगएहिं जीयेहिं विहेसिया अत्रे (५५७) साययभयाभिमूओ बहूसुअडवीसुनिरभिरामासु। सुरहि-हरिण-महिस-सूयरकझोडियरुपयछायासु ||५५६॥ (५५८) गय-गवय-खग्ग-गंडय-वग्य-तरच्छ-इच्छमालवरियासु । मल्लुकि-कंक-दीविय-संवरसमावकिण्णासुं ||५५७॥ (५५९) मत्तगइंदनिवाडियमिल्ल-पुलिंदावकुंडियवणासुं। वसिओ हंतिरियत्ते भीसणसंसारचारिम्भि (५६०) कत्यइ मुखमिगत्ते बहुसो अडवीसु पयइयिसमासु।। वग्धमुहावडिएणं रसियं अइभीयहिपएणं (५६१) कत्यइ अइदुप्पिक्खो भीसण-बिगराल-घोरवयणोई। आसि अहं चिय वाघो सल-महिस-वराहविद्दवओ ॥५६॥ (१६२) कत्यइ दुन्विहिएहि रक्खस-वेयाल-भूपरूवहिं। छलिओबहिओय अहं मणुस्सजम्मम्मिनिसारो (५५५) पयइकुडिलम्मि कत्यइसंसारे पाविऊण भूयत्तं। बहुसो उब्दियमाणामए विबीहाविया सत्ता (५५) विरसं आरसमाणो कत्थाइ रण्णेसु घाइओआइयं । सावयगहणम्मिवणे भयभीसखुमियचित्तोहं (५५५) पत्तं विचित्त-विरसं दुक्खं संसारसागरगतेणं। रसियं च असरणेणकयंतदंतंतरगतेणं (५४६) तइया कीस न हायइजीयो मइया सुसाणपरिविद्धं । मलंकि-कंक-वायससएस दोकिए देहं ||४६५॥ (५५७) तातं निअिणिऊणंदेहं मोत्तणवोजीयो। सोजीको अविणासी भणिओ तेलुक्कदंसीहिं (१५८) तंजइ तावन मुबइजीयो मरणस्स उब्बियंतो वि। तम्हा मज्झ नजुआइ पाऊण भयस्स अप्पाणं (१५९) एवमनुचिंतयंतासुविहिय जर-मरणमावियमईया। पावंति कयपयत्ता मरणसमाहिमहामागा। ||५६८॥ (५७०) एवं मावियचित्तो संधारवरम्मि सुविहिय सया वि। मावेहि मावणाओबारस जिनवयणदिवाओ (५७१) अह इत्तो चउरंगे चउत्यमगंसुसाहुधम्मामि। वत्रेइ भावणाओ बारसिमा वारसंगविऊ ।।५७०॥ (५७२) समणेण सायएणयजओ निलंपिभावणिक्षाओ। ददसंवेगकरीओविसेसओउतिमम्मि (५७३) पढमं अनिघावं असरणयं एगपंधउन्नतं । संसार मसुमयायियवियिह लोगस्सहाच ||५६॥ ॥५६॥ ॥५६६॥ ॥५६७॥ ५९॥ ॥५७१॥ ॥५७२॥ For Private And Personal Use Only

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