Book Title: Agam 33A Maransamahi Painnagsutt 10A Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 18
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पाह-७८ ||१७८॥ ॥१७॥ 119001 ॥१८॥ ॥१८॥ ॥१८३॥ ॥ ४॥ 11१८५॥ (१०८) उल्लीणोलीणेहि य अहवन एगंतवद्धमाणेहिं । संलिह सरीरमेयं आहारविहि पयणुयंतो। (१७९) अनुपुल्दोणाऽऽहारं ओवहितोसुओवएसेणं. विविहतवोकमेहि य इंदियविक्कीलियाईहिं (१८०) विविवाहिं एसणाहिय विविहेहि अभिग्गहेहिं उग्गेहि। संजमविराहिंतो जहाबलं संलिह सरीरं (१८) दिविहाहि य पडिमाहि य बल वीरिय जइय संपहोइ सुहं । ताओ दिन बाहितीजहक्कम संलिहंतम्मि (१८२) छम्मासिया जहन्ना उक्कोसा बारसेव वरिसाई। आयंबिलं महेसी तस्वय उक्कोसयं बिति (१८३) छऽनुय-दसम-दुवालसेहिं पत्तेहिं चित्त-किडेहिं । मिय-लहुकं आहारं करेहि आयंबिलं विहिणा (१८४) परिवटिओवहाणो हारुछिरा-वियडपासुलि-कडीओ। संलिहियतनुसरीरो अज्झप्परओ मुनी नियं (१८५) एवं सरीरसंलेहणाविहिं बहुविहं पि फासिंतो। अज्झवसाणविसुद्धिं खणं पितो मापमाइत्या (१८६) अज्झवसाणविसुद्धीविवञ्जियाजे तयं विगिढमवि । कुन्नति बाललेसा न होइसा केवलासुद्धी (१८७) एयंसरागसलेहणाविहिं जइ जई समायरइ। अशाप्पसंजुयमई सो पावह केवलं सुद्धिं (124) निखिलाफासेपच्या सरीरसंलेहणाविही एसा। एत्तो कसायजोगा अज्झप्पबिर्हि परंवोच्छं (१८९) कोहं खमाइ मानं महवया अञ्जवेण मायंच संतोसेणय लोमं निक्षिण धत्तारि विकसाए (१९०) कोहसपमानस्सप माया-लोमेसुवान एएसि । वनइवसंखणं पिहुदुग्गइगइवड्टकराणं (११) एवं तुकसायग्गी संतोसेणं तु विज्झवेयब्दो। राग-दोसपबत्तिं व माणस्स विजाइ (१९३) जाति केइ ठाणा उदीरगाहुँति हूकसायाणं । ते उसया वझेंतो विमुत्तसंगो मुनी विहरे (१९३) संतोवसंत-धिइमं परीसहविहिंघ समहियासंतो। निस्संगयाए सुविहिय संलिह मोहे कसाए य (११) इटाऽनिद्देसुसया सद्द-फरिस-रस-सव-गंधेहिं । सुह-दुक्खनिव्विसेसो जियसंग-परीसहो विहरे (१९५) समिईसुपंचसमिओ जिणाहितं पंच इंदिए सुटुं। तिहि गारवेहि रहिओ होहि तिगुत्तीय दंडेहि ॥१८॥ ॥१८७॥ १८८॥ ।।१८॥ ॥१९॥ ॥१९॥ 11१९२|| १९३॥ ||१९४॥ ||१९५॥ For Private And Personal Use Only

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