Book Title: Agam 33A Maransamahi Painnagsutt 10A Moolam
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 16
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गाळ४२ ||१४२॥ ॥१४३|| ॥१४४|| ||१४५ ||१YEL ||१४७॥ ॥१४८॥ ॥१९॥ ॥१५॥ (१२) बंधं मोक्खं गइरागईधजीवाणजीवलोयमि। जाणंति सुयसमिद्धा जिनसासणचोइयविहन्नू (11) मई सुबहुसुयाणं सन्दपयत्येसु पुच्छणिनाणं । नाणेणुगोवयरा सिद्धिं पि गएसुसिद्धेसु (१४) किं एतो लट्टयरं अच्छेतरं व सुंदरतरं वा । धंदमिय सबलोगा बहुस्सुयमुहं पलोयंति (४५) चंदाउ नीइजोण्डा बहुस्सुयमुहाओ नीइ जिनवयणं । जंसोऊण सुविहिया तरंति संसारकंतारं (ort) चउदसपुव्वधराणं ओहीनाणीण केवलीणं च । सोगुत्तमपुरिसाणं तेसिं नाणं अमित्राणं (१rm) नाणेण विना करणं न होइ नाणं पिकरणहीणंतु। नाणेणय करणेण यदोहि विदुक्खक्खय होई (१४८) पदमूलमहाणम्मि वि वरमेगो विसुय-सीलसंपन्नो । माहुसुय-सीलविगला काहिसि मानं पवयणम्मि (१४९) तहासुयम्भि जोगो कायव्यो होइ अप्पमतेणं। जेणऽप्पणं परं पिय दुक्खसमुद्दाओ तारेइ (१५०) परमत्यप्मिसुदिट्टे अविणडेसु क्तव-संजमगुणेसु। लब्मइ गई विसुद्धा सरीरसारे विणहम्मि (१५१) अविरहिया जस्स मईपंचहि समिहिं तिहि विगुत्तीहि । नय कुणइ राग-दोसे तस्स घरितं हयइ सुद्धं (१५२) उक्कोसचरित्तो वियपरिषडई मिच्छभावणं कुणइ। किंपुण सम्मद्दिडी सरागधम्मम्मि यहतो (१५३) तम्हाधतह दोस विकाउंजे उअमंपयत्तेणं। सम्मत्तिम्मिचरिते करणम्मि यमापमाएह (१५४) जावय सुईन नासइजाय यजोगानतेपराहीणा। सद्धाघजानहायइइदियजोगा अपरिहीणा (१५५) जावय खेम-सुमिक्खं आयरियाजाव अत्यि निझवगा। इड्ढीगारवरहिया नाण-चरण-दंसणम्मिरया (१५१) ताव खमकाउंजे सरीरनिक्खेवणं विउपसत्यं । समयपडागाहरणं सुविहियइ नियमजुत्तं (१५७) हंदि अणिद्या सद्धासुई यजोगा य इंदियाइंच। तम्हाएवं नाउं विहरहतव-संजमुझुत्ता। (१५८) ताएयं नाऊणं ओवायं नाण-दसण-चरित्ते। धीरपुरिसाणुपचित्रं करेंति सोहि सुपसमिद्धा (१५१) अमितर-बाहिरियं अह ते काऊण अप्पणो सोहि । तिविहेण तियिह करणं तिविहे काले वियडभावा ||१५|| ||१५|| ||१५३॥ 11१५४|| ॥१५॥ ॥१५६॥ ॥१५७॥ ॥१५८॥ ॥१५॥ For Private And Personal Use Only

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