________________ सातवी दशा [51 मासिकी भिक्षुप्रतिमा मासियं णं भिक्षुपडिम पडिबन्नस्स अणगारस्स कप्पइ एगा दत्ती भोयणस्स पडिगाहित्तए, एगा पाणस्स। अण्णायउञ्छ, सुद्धोवहडं, निज्जूहित्ता बहवे दुप्पय-चउप्पय-समण-माहण-अतिहि-किविणं वणीमगे, कप्पइ से एगस्स भुजमाणस्स पडिगाहित्तए। णो दुण्हं, णो तिण्हं, णो चउण्हं, जो पंचण्हं, णो गुठिवणीए, णो बालवच्छाए, णो दारगं पेज्जमाणोए। णो से कप्पइ अंतो एलुयस्स दो वि पाए साहट्ट दलमाणीए, णो बाहिं एलुयस्स दो वि पाए साहट्ट दलमाणीए। अह पुण एवं जाणेज्जा, एगं पायं अंतो किच्चा, एगं पायं बाहि किच्चा एलयं विक्खंभइत्ता एवं से दलयति, कप्पति से पडिगाहित्तए, एवं से नो दलयति, नो से कप्पति पडिगाहित्तए। मासिकी भिक्षुप्रतिमाधारी अनगार को एक दत्ति भोजन की और एक दत्ति पानी की लेना कल्पता है। वह भी अज्ञात स्थान से, अल्पमात्रा में और दूसरों के लिए बना हुआ हो तथा अनेक द्विपद, चतुष्पद, श्रमण, ब्राह्मण, अतिथि, कृपण और भिखारी आदि भोजन लेकर चले गए हों, उसके बाद ग्रहण करना कल्पता है / जहां एक व्यक्ति भोजन कर रहा हो, वहां से आहार-पानी की दत्ति लेना कल्पता है। किन्तु दो, तीन, चार या पांच व्यक्ति एक साथ बैठकर भोजन करते हों, वहां से लेना नहीं कल्पता है। गर्भिणी, बालवत्सा और बच्चे को दूध पिलाती हुई स्त्री से लेना नहीं कल्पता है। जिसके दोनों पैर देहली के अन्दर या दोनों पैर देहली के बाहर हों, ऐसी स्त्री से लेना नहीं कल्पता है। किन्तु यह ज्ञात हो जाए कि एक पैर देहली के अन्दर है और एक पैर बाहर है, इस प्रकार देहली को पांवों के मध्य में किये हुए हो और वह देना चाहे तो उससे लेना कल्पता है। इस प्रकार न दे तो लेना नहीं कल्पता है / प्रतिमाधारी के भिक्षाकाल मासियं णं भिक्खुपडिम पडिवनस्स अणगारस्स तओ गोयरकाला पण्णता, तं जहा१. आइमे, 2. मझे, 3. चरिमे / 1. जइ प्राइमे चरेज्जा; नो मज्झे चरेज्जा, णो चरिमे चरेज्जा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org