________________ सातवी दशा] [55 चाहे जल हो या स्थल हो, दुर्गमस्थान हो या निम्नस्थान हो, पर्वत हो या विषमस्थान हो, गर्त हो या गुफा हो, तो भी उसे पूरी रात वहीं रहना कल्पता है, किन्तु एक कदम भी आगे बढ़ना नहीं कल्पता है। रात्रि समाप्त होने पर प्रातःकाल में यावत् जाज्वल्यमान सूर्योदय होने पर पूर्व, दक्षिण, पश्चिम या उत्तर दिशा की ओर अभिमुख होकर उसे ईर्यासमितिपूर्वक गमन करना कल्पता है / सचित्त पृथ्वी के निकट निद्रा लेने का निषेध मासियं णं भिक्खुपडिम पडिवनस्स अणगारस्स णो से कप्पइ अणंतरहियाए पुढवीए निदाइत्तए वा, पयलाइत्तए वा। केवली बूया-"आयाणमेयं"। से तत्थ निद्दायमाणे वा, पयलायमाणे वा हत्थेहि भूमि परामुसेज्जा। [तम्हा] अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए। एकमासिकी भिक्षुप्रतिमाधारी अनगार सूर्यास्त हो जाने के कारण यदि सचित्त पृथ्वी के निकट ठहरा हो तो उसे वहां निद्रा लेना या ऊँघना नहीं कल्पता है। केवली भगवान् ने कहा है-'यह कर्मबन्ध का कारण है'। क्योंकि वहां पर नींद लेता हुया या ऊँघता हुअा वह अपने हाथ आदि से सचित्त पृथ्वी का स्पर्श करेगा, जिससे पृथ्वीकाय के जीवों की हिंसा होगी। अतः उसे सावधानीपूर्वक वहां स्थिर रहना या कायोत्सर्ग करना कल्पता है / मलावरोध का निषेध उच्चारपासवणेणं उन्बाहिज्जा, नो से कप्पति उगिण्हित्तए वा, णिगिण्हित्तए वा। कम्पति से पुन्यपडिलेहिए थंडिले उच्चार-पासवणं परिट्ठावित्तए, तमेव उवस्सयं आगम्म अहाविहिमेव ठाणं ठाइत्तए। यदि वहां उसे मल-मूत्र की बाधा हो जाए तो धारण करना या रोकना नहीं कल्पता है। किन्तु पूर्वप्रतिलेखित भूमि पर मल-मूत्र का त्याग करना कल्पता है और पुनः उसी स्थान पर आकर सावधानी पूर्वक स्थिर रहना या कायोत्सर्ग करना कल्पता है। सचित्त रजयुक्त शरीर से गोचरी जाने का निषेध मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स अणगारस्स नो कप्पति ससरखेणं काएणं गाहावइकुलं भत्ताए वा, पाणाए वा निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा। अह पुण एवं जाणेज्जा ससरक्खे सेयत्ताए वा, जल्लत्ताए वा, मल्लताए वा, पंकत्ताए वा परिणते, एवं से कप्पति गाहावइकुलं भत्ताए वा, पाणाए वा निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा। Jain Education International For Priyate & Personal Use Only www.jainelibrary.org