Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 185
________________ 1.] [दशाभूतस्कन्ध वह अनगार भगवंत ईर्या-समिति का पालन करने वाला यावत् ब्रह्मचर्य का पालन करने वाला होता है। इस प्रकार के आचरण से वह अनेक वर्षों तक संयमपर्याय का पालन करता है, अनेक वर्षों तक संयमपर्याय का पालन करके रोग उत्पन्न होने या न होने पर भी भक्त-प्रत्याख्यान करता है, भक्त-प्रत्याख्यान करके अनेक भक्तों का अनशन से छेदन करता है, अनेक भक्तों का अनशन से छेदन करके पालोचना एवं प्रतिक्रमण द्वारा समाधि को प्राप्त होता है और जीवन के अन्तिम क्षणों में देह त्याग कर किसी देवलोक में देवरूप में उत्पन्न होता है। हे प्रायुष्मन् श्रमणो ! उस निदानशल्य का यह पाप रूप परिणाम है कि वह उस भव से सिद्ध नहीं होता है यावत् सब दुःखों का अन्त नहीं कर पाता है। निदानरहित को मुक्ति एवं खलु समणाउसो ! मए धम्मे पण्णत्ते-इणमेव निग्गथे पावयणे सच्चे जाव' सव्वदुक्खाणमंतं करेंति / जस्स णं धम्मस्स सिक्खाए निग्गथे उदिए विहरमाणे से य परक्कमेज्जा से य परक्कममाणे सव्वकामविरत्ते, सव्वरागविरत्ते, सव्वसंगातीते, सव्यहा सम्वसिणेहातिक्कते सम्वचरित्तपरिवुडे / तस्स गं भगवंतस्स अणुत्तरेणं णाणेणं, अणुत्तरेणं दंसणेणं जाव' अणुत्तरेणं परिनिव्वाणमागेणं अप्पाणं भावमाणस्स अणते, अणुत्तरे, निव्याघाए, निरावरणे, कसिणे, पडिपुण्णे केवलवरनाणदंसणे समुप्पज्जेज्जा। तए णं से भगवं अरहा भवइ, जिणे, केवली, सव्वण्णू, सव्वभावदरिसी, सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स पज्जाए जाणइ, तं जहा आगई, गई, ठिई, चवणं, उववायं, भुतं, पीयं, कडं, पडिसेवियं, आवीकम्मं, रहोकम्म, लवियं, कहियं, मणोमाणसियं / सव्वलोए सव्यजीवाणं सव्वभावाई जाणमाणे पासमाणे विहरइ। से णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणे बहूई वासाई केवलिपरियागं पाउणइ, पाउणित्ता अप्पणो पाउसेसं आभोएइ, प्राभोएत्ता भत्तं पच्चक्खाएइ, पच्चक्खाइत्ता बहूई भत्ताई प्रणसणाइ छेदेइ, तओ पच्छा चरमेहिं ऊसासनीसासेहि सिज्झइ जाव: सव्वदुक्खाणमंतं करेइ / __ एवं खलु समणाउसो! तस्स अणिदाणस्स इमेयारूबे कल्लाणे फलविवागे जं तेणेव भवम्गहणणं सिज्मति जाव सव्वदुक्खाणं अंतं करेइ / -...------ 1. प्रथम निदान में देखें। 2. दसा. द. 10, सु. 33 नवसुत्ताणि 3. प्रथम निदान में देखें। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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