Book Title: Agam 27 Chhed 04 Dashashrutskandh Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ दसवी दशा] निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थी के द्वारा स्वदेवी-परिचारणा का निदान करना एवं खलु समणाउसो! मए धम्मे पण्णत्ते जाव' से य परक्कममाणे माणुस्सएसु कामभोगेसु निवेयं गच्छेज्जा, "माणुस्सगा खलु कामभोगा अधुवा जाव विप्पजहणिज्जा। संति उड्ढं देवा देवलोयंसि ते णं तत्थ णो अण्णेसि देवाणं देवीओ अभिजु जिय-अभिजुजिय परियारेति, अप्पणो चेव अप्पाणं विउवित्ता परियारेति, अप्पणिज्जियाओ देवीओ अभिजु जियअभिजुजिय परियारेति / " | "जइ इमस्स सुचरियतवनियमबंभचेरवासस्स कल्लाणे फलवित्तिविसेसे अस्थि, अहमवि आगमेस्साए इमाई एयारूवाई दिव्वाइं भोगाई भुजमाणे विहरामि-से तं साहु / " एवं खलु समणाउसो ! णिग्गंथो वा णिग्गंथी वा णियाणं किच्चा जाव देवे भवइ, महिडिए जाव' दिव्वाई भोगाइं भुजमाणे विहरइ / __ से णं तत्थ णो अण्णास देवाणं देवोओ अभिजुजिय-अभिजुजिय परियारेइ, अप्पणो चेव अप्पाणं विउब्विय-विउव्विय परियारेइ, अप्पणिज्जियानो देवीओ अभिजु जिय-अभिजु जिय परियारेइ। से णं तानो देवलोगाओ आउक्खएणं जाव' पुमत्ताए पच्चायाति जाव' तस्स णं एगमवि आणवेमाणस्स जाव चत्तारि पंच अवुत्ता चेव अभुद्रुति "भण देवाणुप्पिया ! किं करेमो ? जाव' किं ते आसगस्स सयइ ?" प०--तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजायस्स तहारूवे समणे वा माहणे वा उभयो कालं केवलिपण्णत्तं धम्ममाइक्खेज्जा ? उ०—हंता! प्राइक्खेज्जा। ५०-से गं पडिसुणेज्जा ? उ०-हंता! पडिसुज्जा / १०-से णं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा ? उ०—णो तिणठे समठे, अण्णत्थरुई यावि भवति / अण्णरुइमायाए से भवति जे इमे आरणिया, आवसहिया, गामंतिया, कण्हूइरहस्सिया। णो बहु-संजया, णो बहुपडिविरया सव्व-पाण-भूय-जीव-सत्तेसु, अप्पणो सच्चामोसाइं एवं विपडिववंति अहं णं हंतव्वो, अण्णे हंतव्वा, अहं णं अज्जावेयब्वो, अण्णे अज्जावेयव्वा, अहं णं परियावेयन्वो, अण्णे परियावेयव्वा, 1-7. प्रथम निदान में देखें / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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